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उत्तर : 'रैंड डेली मेल' को

अनियन्त्रित प्रवेशकी माँग करते हैं । परन्तु लॉर्ड-सभामें हुई चर्चासे प्रकट होता है कि अभी उस सम्बन्धमें साम्राज्य सरकारकी कोशिश जारी है। प्रश्न सिर्फ समयका है। और जीतका दारमदार सत्याग्रहियोंपर है ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९१०

२४९. उत्तर : 'रैंड डेली मेल' को

जोहानिसबर्ग
अगस्त ९, १९१०

महोदय,

'एशियाटिक एक्ज़ाज़रेशन' ( एशियाई अत्युक्ति ) शीर्षकसे आपने इस प्रान्त में तथा एक जहाजपर, जिसमें कुछ महीने हुए साठ सत्याग्रहियों को ले जाया गया था, सत्याग्रहियोंके साथ किये गये दुर्व्यवहारके प्रश्नको फिर उठाया है। सत्याग्रही कमसे कम दो बातों से बिलकुल परे रहे हैं- - एक तो अत्युक्ति और दूसरे किसी भी तरहकी हिंसा । ये दोनों बातें सत्याग्रहकी आत्मासे सर्वथा विपरीत मानी जाती हैं । कोई कितना ही खण्डन क्यों न करे, दुर्व्यवहारकी शिकायतें तबतक बराबर की जाती रहेंगी जबतक जेलमें सत्याग्रही कैदियोंके साथ असाधारण दुर्व्यवहार होता रहेगा। उन्हें न केवल अपराध- कर्मियोंके समकक्ष समझा जा रहा है बल्कि उन्हें ऐसी जेलोंमें रखा जाता है जो पक्के गुनहगारोंके लिए हैं । आपका कथन है कि सत्याग्रहियोंने मारे-पीटे जानेकी बार-बार शिकायतें की हैं। परन्तु वास्तवमें उन्होंने इतना ही कहा है कि कुछ इक्के- दुक्के मामलोंको छोड़कर कैदियोंको मारा-पीटा नहीं गया है। लॉर्ड मॉर्ले-जैसे उच्च पदाधिकारी द्वारा जहाजपर हुए दुर्व्यवहारका खण्डन किये जानेपर भी हम यह पूछना चाहेंगे कि क्या लॉर्ड साहबने कभी स्वयं मुसाफिरोंसे पूछताछ करनेका आदेश दिया था ? मुझे पता चला है कि ऐसी कोई बात नहीं की गई। ऐसी सूरत में भारतीय समाज तो मुसाफिरोंकी बातको ही सच मानेगा। लेकिन इस घटनाके बारेमें भी लोग यही सोचते जान पड़ते हैं कि जब भी कोई भारतीय दुर्व्यवहारकी शिकायत करता है तो उस दुर्व्यवहारका अर्थ मार-पीट ही होना चाहिए। अगर मारा-पीटा न गया हो तो वह दुर्व्यवहार ही कहाँ है ! सत्याग्रहियोंको डेकपर सफर करने के लिए मजबूर किया गया, और ठीक भोजन भी उन्हें एक दिन अनशन करनेपर दिया गया। आपकी रायमें शायद ये बातें विचार और जाँचके लायक नहीं हैं, परन्तु सम्बन्धित लोगोंके लिए ये बातें काफी महत्व रखती हैं । सत्याग्रहियोंके साथ होनेवाले दुर्व्यवहारोंके समाचार भारतमें पहुँचने और फैलने न पायें. - इसका उपाय केवल यही है कि पहले तो अधिकारी अच्छे - १. यह रैंड डेली मेलमें “पैसिव रेजिस्टर्स ” (सत्याग्रही) शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था ।