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२५१. संघ-शासनमें भारतीय

जिन लोगोंने सोचा था कि दक्षिण आफ्रिकाका भारतीय समाज संघ-राज्य (यूनियन ) के मातहत अधिक सुखी रहेगा, उनका भ्रम अब तेजीसे दूर हो रहा है । ट्रान्सवालमें सत्याग्रहियोंका उत्पीड़न जारी है। ऑरेंज फ्री स्टेटने उनके विरुद्ध द्वार बन्द कर रखा है। केपमें दबे-छुपे ही सही लेकिन उनके विरुद्ध एक आन्दोलनको निश्चय ही प्रोत्साहन दिया जा रहा है और नेटालके अनुमतिपत्र सम्बन्धी कानून, हालके संशोधनके' बावजूद अबतक भारतीय दूकानदारों और व्यापारियोंके लिए एक स्थायी संकट बने हुए हैं। एस्टकोर्टका मुकदमा, जिसकी ओर हम कुछ समय पहले ध्यान आकृष्ट कर चुके हैं, अब एक नई मंजिलपर जा पहुँचा है। प्रान्तीय अदालतने फैसला दिया है कि सरकार द्वारा निकायके कतिपय सदस्योंकी नियुक्ति वैध थी । इसलिए हमारा अनुमान है कि पीड़ित पक्ष फिर अपील- बोर्डकी शरण लेगा । बेजार कर देनेवाली इस कार्रवाईके खत्म होने तक सम्बन्धित पक्ष, अर्थात् श्री सुलेमान एक लम्बी रकमसे हाथ धो बैठेगा। उपनिवेशमें कितने भारतीय व्यापारी ऐसे हैं जो इतनी लम्बी लड़ाईका बोझ गवारा कर सकें?

एक और उदाहरण श्री गोगाका लीजिए। श्री गोगा बीस साल पुराने एक प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति हैं; अनेक प्रतिष्ठित यूरोपीय उनके ग्राहक हैं और लेडीस्मिथके प्रतिष्ठित यूरोपीय निस्संकोच उनका समर्थन करते हैं। और दूकानकी जगह भी उनकी अपनी है, फिर भी उन्हें अनुमतिपत्र मिलना दुश्वार हो रहा है। श्री गोगा किसी यूरोपीयको अपनी दूकान किरायेपर भी नहीं दे सकते और न उसे बेच ही सकते हैं, अनुमतिपत्र- अधिकारीको इसकी कोई परवाह नहीं है। क्योंकि वे भारतीय हैं इसलिए उन्हें चुपचाप हानि सह लेनी चाहिए ।

प्रश्न उठता है : अन्यायके ऐसे स्पष्ट मामलोंमें भी संघ भारतीयोंकी क्या सहायता करता है ? इसका उत्तर तो यह है कि संघके मातहत भारतीयोंको किसी भी प्रकारकी सुविधा नहीं मिलेगी; बल्कि बहुत मुमकिन है, उनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो जाये और उनके विरुद्ध समस्त प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ एक हो जायें । समाजको सावधान हो जाना चाहिए। ऐसे शक्तिशाली गुटसे लड़नेका कारगर रास्ता एक ही है कि हम एक हों और आत्मनिर्भर बनें ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-८-१९१०

१. देखिए "नेटालका परवाना अधिनियम ", पृ४ १०४ ।

२. एस्टकोर्टके अनुमतिपत्र-अधिकारीने सुलेमानको अनुमतिपत्रका तबादला कराने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था । इसपर सुलेमानने एस्टकोर्ट अनुमतिपत्र निकायमें अपील की। वहाँ उनके वकीलने निकायके विधानपर आपत्ति की और कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया। फिर भी अनुमतिपत्र निकायने निर्णय दे दिया । उस निर्णयपर पुनर्विचार करनेकी अर्जी सर्वोच्च न्यायालय (नेटाल डिवीजन) ने २ अगस्तको खारिज कर दी थी।

३. लेडीस्मिथ में गोगा नामक एक खुदरा व्यापारीको अपनी ही दूकान में व्यापार करनेका अनुमतिपत्र देनेसे इनकार कर दिया गया था, हालाँकि उनके समर्थन में ३७ यूरोपीयोंने अनुमतिपत्र अधिकारीको प्रार्थनापत्र भेजा था। Gandhi Heritage Porta