पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं दिखा सकते। तुम्हारे या छगनलालके व्यवहारमें मैं माता-पिताकी सेवाकी इस वृत्तिके विरुद्ध कुछ नहीं पाता। अतः मैं निश्चिन्त हूँ।

छगनलालने प्रदर्शनीके बारेमें जो लिखा है, वही छाप सबपर पड़ी है। वह सोनेका मृग है। सीताजीका मन जब ऐसे मृगके प्रति ललचा गया, तब भला हमारी क्या चलाई ? यह चमक-दमक पश्चिमकी सभ्यताकी कृपा है। वह हमें मोहित न कर पाये, हमारी जीत इसीमें है। मेरे कहनेका आशय यह नहीं है कि छगनलाल मोहमें पड़ गया है परन्तु उससे उसे चकाचौंध जरूर हुई है। और शुरू-शुरूमें सभीका यही हाल होता है।

सन्तोकको न भेजनेकी छगनलालकी सलाहसे मैं सहमत हूँ। मेरा ऐसा खयाल है कि वह देशमें सुखी न होगी। हमारी ऐसी करुणाजनक स्थिति है। यहाँ उसे जो आत्मिक और शारीरिक स्वतन्त्रता प्राप्त है, वह उसकी स्थितिकी स्त्रियोंके लिए देशमें सुलभ नहीं है। फीनिक्समें रहते-रहते उसका मन परिष्कृत होकर दृढ़ हो जाये, उसमें इतना साहस भी आ जाये कि वह अपने विचारों और व्यवहारकी जो शुद्ध हैं - निडर होकर देशमें भी रक्षा कर सके, तभी उसे देशमें अच्छा लगेगा। और तब उसका वहाँ रहना देशके लिए कल्याणकारी होगा और वह देशकी तथा अपनी आत्माकी सेवा करेगी। परन्तु मेरा खयाल है कि अगर चंचीकी तरह ही सन्तोकके लिए भी आग्रह किया जा रहा हो तो उसे जाने देना ठीक होगा। वेणी' अपने प्रत्येक पत्रमें लिखती है कि भारतमें उसकी स्थिति ऐसी है मानो वह किसी कारागारमें पड़ी हो । यह बात स्त्रियोंपर ही लागू होती हो सो नहीं है।

इस पत्रका कोई भी भाग, परोक्ष रूपसे भी, छगनलालपर प्रकट न करना, क्योंकि उससे अकल्याण होनेकी सम्भावना है। मैं उसके पत्रोंपर विचार करता ही रहता हूँ। जब आवश्यक सममूंगा, मैं स्वयं ही उसे लिखूंगा। मैं जो आलोचना करता हूँ, सम्भव है, वह गलतफहमीका परिणाम हो । वैसा हो, तो भी उसकी विचारधारामें कोई व्यवधान नहीं होने देना चाहिए; क्योंकि छगनलालके विषयमें मेरा यह विश्वास तो है ही कि किसी भी मामलेमें वह अपनी ही बुद्धिके द्वारा ठीक रास्तेपर आ जायेगा ।

तुमको मैंने विस्तारसे इसीलिए लिखा है कि तुम्हारा मन किसी प्रकारसे क्षुब्ध अथवा खिन्न न हो ।

आनेवालेने मुझे यह नहीं बताया था कि घड़ी टिपनिसकी है। उसने कहा था कि वह तुम्हारी भेजी हुई है। इसीलिए मैंने [जोहानिसबर्गकी चिट्ठीमें ] उसका नाम नहीं दिया। अगर तुमने वहीं अबतक संशोधन न किया हो तो मैं अगले सप्ताह में संशोधन कर दूंगा। तालेवन्तसिंहका भेजा सामान नहीं मिला है। पता लगाऊँगा । मुझे ऐसा लगता है कि डेमरेज भरना पड़ेगा। उन्होंने मुझे यह भी सूचित नहीं किया कि क्या-क्या सामान है ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९३५) से ।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।

१. प्रिटोरियाके प्रमुख भारतीय और सत्याग्रही श्री गौरीशंकर व्यासकी पत्नी । Gandhi Heritage Porta