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२६७.सर्वश्री रिच और पोलक

समाचारपत्रों में प्रकाशित तारोंके अनुसार, सर्वश्री रिच और पोलक शीघ्र ही हमारे बीच होंगे। दक्षिण आफ्रिकाके समाजके इन दो मित्रोंने जिस तरह हमारे लिए खून-पसीना एक किया है, वैसा हमारे अपने देशवासियोंमें से भी कम लोगोंने ही किया होगा। उन्होंने अपने आपको हमारे ध्येयके साथ एक-रूप कर लिया है। सचमुच वे हमारे संकटके साथी हैं। इन दोनोंके कामकी तुलना करना सम्भव भले ही हो, किन्तु कठिन अवश्य है। प्रत्येकने अपने विशेष क्षेत्रमें भरसक काम किया है। श्री रिच लॉर्ड ऍम्टहिलकी समितिके प्राण हैं। श्री पोलकके शानदार कामकी तो बम्बईमें सार्वजनिक रूपसे प्रशंसा भी की गई और प्रोफेसर गोखलेने उन्हें चायका एक चाँदीका सेट भेंट किया।' उक्त माननीय सज्जनने सत्याग्रहियोंकी सहायताके लिए ६,००० पौंडका उल्लेखनीय चन्दा इकट्ठा करनेका श्रेय श्री पोलकको ही दिया; उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं थी । आशा है कि सर्वश्री रिच और पोलकका समाजकी ओरसे ऐसा स्वागत- सत्कार होगा जैसा आजतक हमने किसीका नहीं किया। वे सचमुच इसके पात्र हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९१०

२६८. भारतीयोंको सुझाव

१५ सितम्बरको पता चल जायेगा कि दक्षिण आफ्रिकामें निकट भविष्यमें कौन राज्य करेगा – जनरल बोथा, श्री मेरीमैन या डॉक्टर जेमिसन । सम्भावना तो यह है कि जनरल बोथा राज्य करेंगे। हमारा खयाल है, अबतक हरएक भारतीय समझ चुका होगा कि जनरल बोथाको खुशामदसे नही रिझाया जा सकता ।

भारतीय चारों ओर आगसे घिरे हैं । अमेरिकाके कुछ प्रदेशोंके जंगलोंमें ऐसी आग लग जाती है कि वह बुझाये नहीं बुझती। उसे बुझानेके लिए सेनाएँ निकल पड़ती हैं, तिसपर भी उसको बुझाना कठिन होता है। सैकड़ों लोग जल मरते हैं । आस-पासके गाँव उजड़ जाते हैं। दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके चारों ओर ऐसी ही आग सुलग रही है। फिर भी हम सचेत नहीं होते। यह हमारे घोर आलस्य और स्वार्थका चिह्न है ।

केप टाउनमें अबतक डॉक्टर अब्दुर्रहमान और उनके मित्रोंके प्रयत्नसे भारतीय व्यापारियोंको अनुमतिपत्र मिलनेमें कोई अड़चन नहीं आती थी; किन्तु अब स्थिति बदल गई है। परिषदने कुछ क्षेत्रों में अनुमतिपत्रोंको देनेसे कतई इनकार कर दिया है। इसका

२. देखिए “बम्बई में विदाई भोज", इंडियन ओपिनियन, ३-९-१९१० । Gandhi Heritage Portal