पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४५
पत्र : छगनलाल गांधीको

ऐसे जालसे बचनेका रास्ता एक ही है। वह यह कि हम लोग सचेत रहें, आलस्य छोड़ें, स्वार्थ त्यागें और अपने भीतरी झगड़े छोड़कर समुचित उपाय करें ।

इन उपायोंमें अर्जियाँ भेजना, रुपया हो तो अदालतमें जाना, इंग्लैंडमें जितना लड़ा जा सके उतना लड़ना - ये सब तो ठीक ही हैं, परन्तु अकसीर इलाज एक ही • सत्याग्रह । उसके बिना सब बेकार है । सत्याग्रह वास्तवमें स्वबल है। और स्वबलके बिना अन्य किसी भी बलके सहारे हम लोग अधिक देर तक टिक ही नहीं सकेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९१०

२६९. पत्रः छगनलाल गांधीको

टॉल्स्टॉय फार्म
भाद्रपद सुदी ७, [ सितम्बर ११, १९१०]

चि० छगनलाल,

तुम्हारे विषयमें तार दिये पाँच दिन हो गये। अभीतक उत्तर नहीं आया। इससे अनुमान करता हूँ कि अभी तुम वहीं हो और कुछ तय नहीं कर पाये हो । यहाँ न आनेके जो कारण तुम बताते हो वे सब लचर हैं। उनसे पता चलता है कि तुम्हारा मन दुर्बल हो गया है। तुम्हारा शरीर हिन्दुस्तानमें ही दुर्बल हो चुका था। फीनिक्समें तुम्हारी सेवा-शुश्रूषामें तनिक भी कठिनाई नहीं होगी। सम्भव है, वहाँ मेरे रहनेका अवसर भी आये, या हो सकता है तुम ही यहाँ आ जाओ। फिर तुम्हारा स्वास्थ्य कुछ ऐसा खराब तो है नहीं कि किसीको सारे दिन तुम्हारे पास बैठना पड़े; और तबीयत वैसी हो भी जाये तो जितनी सुविधा फीनिक्समें है उतनी फिलहाल देशमें नहीं है, ऐसा मेरा विचार है। तुम देश जाकर खुशालभाईको कष्ट ही दोगे, ऐसा प्रतीत होता है। यदि तुम स्वदेशमें किसी गाँवमें जाना चाहते हो, तो फीनिक्स में, वह है ही। अगर तुम्हारा मन फीनिक्समें न लगे अथवा फीनिक्स स्वास्थ्यके अनुकूल न पड़े तो तुम सरलतासे भारत जा सकते हो । पैसेकी दृष्टिसे भी तुम्हारा फीनिक्समें ही रहना अधिक उचित है । वैसा करनेसे डॉक्टर [ मेहता ] को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी और तुम्हें भी देशमें दूसरा कोई काम ढूंढ़ते भटकना नहीं पड़ेगा ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९३७) से। सौजन्य : छगनलाल गांधी । १. यह पत्र छगनलाल गांधी की दक्षिण आफ्रिकासे अनुपस्थितिके दिनोंमें सन् १९१० में लिखा गया था । २. यह उपलब्ध नहीं है । ३. इंग्लैंडमें ।