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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हाथमें आ गया है, इसलिए मैं यहाँ दान माँगकर और भी पैसा इकट्ठा करना चाहता हूँ और यह सारा पैसा मिल जाये, तो फीनिक्समें पाठशालाकी इमारत बनानेकी इच्छा रखता हूँ। यदि वैसा न हो सका, तो सोचता हूँ कि इसका उपयोग सत्याग्रहको उत्तेजन देनेमें करूँगा।

पोलक विलायत गये हैं। उनके लिए कुछ स्थानिक चन्दा किया जा रहा है। ७०० पौंड इकट्ठा करने का विचार है। इतने पैसोंसे वे विलायतमें अक्तूबर मास तक रह सकेंगे और अक्तूबरके लगभग मध्यमें श्रीमती पोलकको लेकर हिन्दुस्तान जायेंगे; वहाँ कांग्रेसमें शामिल होंगे और अगले वर्ष यहाँ जिस विधेयककी बात चल रही है, उसके पास हो जाने तक हिन्दुस्तानमें रहेंगे। उसके बाद वे शीघ्र ही यहाँ आ जायेंगे। इस प्रकार अगले वर्षका मार्च महीना आ पहुँचेगा। इतने दिनोंका कुल खर्च, जिसमें यात्रा खर्च भी शामिल है, करीब ७२५ पौंड होगा। यदि वे हिन्दुस्तानमें हमारे परिचित लोगोंके साथ रह सकेंगे, तो कुछ बचत हो जायेगी। मैं समझता हूँ, उन्हें कुछ समयके लिए आप रंगून बुलायेंगे। श्रीमती पोलकमें उतनी सादगी नहीं है जितनी उनके स्वामीमें है, यह तो आपने देखा ही होगा।

यदि इन आठ या छ: महीनों में मुझे कुछ अवकाश रहा, तो मेरा विचार खादी और करघेपर ध्यान देनेका है। पुरुषोत्तमदास एक कारखानेमें हाथकरघा देख आया है। मैंने उसे वैसा हाथकरघा लेनेकी अनुमति दे दी है। यदि उसने लिया, तो यह खर्च मैं आपसे लूंगा। इन सब नई प्रवृत्तियोंमें फिलहाल तो पैसा खर्च करनेकी आवश्यकता पड़ेगी ही। आपकी ओरसे मैं इस सम्बन्धमें पूरी छूट चाहता हूँ।

मैं देखता हूँ कि यदि मैं शान्तिपूर्वक वकालत करता रहूँ, तो प्रतिमास २०० पौंड मिलते रहेंगे। किन्तु मैंने उसमें न पड़नेका निश्चय किया है। इस कामका अधिकांश रिचके पास जायेगा। रिचको मैंने अपने ही दफ्तरमें बैठाया है और वह काम करने लगा है। उसे अपने कुटुम्बके लिए पैसा कमानेका लोभ है। उसकी यह इच्छा ऊपर बताई हुई रीतिसे पूरी हो जायेगी और उसके कुटुम्बके लिए इस समय समाज की ओरसे जो २५ पौंड हर मास दिये जाते हैं, वे बचेंगे ।

स्मट्सकी ओरसे अन्तिम पत्र अभीतक नहीं आया, किन्तु मेरा खयाल है कि वह आयेगा।

मोहनदासके वन्देमातरम

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०८४) से। सौजन्य : सी० के० भट्ट ।