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अभ्यावेदन : उपनिवेश-मन्त्रीको


यदि यह बात साफ हो जाये कि शैक्षणिक परीक्षा चाहे जैसी रखी जाये उसमें हर वर्ष ५० सुसंस्कृत ब्रिटिश भारतीयोंको प्रवेश करने की अनुमति दी जाये तो हम सन्तोष मान लेंगे।

विकेता परवाना अधिनियम

५. यह अधिनियम अपने अमलमें ब्रिटिश भारतीयों और नेटालके[१] व्यापारियोंके लिए बहुत शरारतपूर्ण सिद्ध हुआ है और परवाना अधिकारियों या बोर्डोके निर्णयके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालयमें अपील कर सकनेके अन्तर्निहित अधिकारको आंशिक रूपमें बहाल करनेके थोड़े-बहुत संशोधनके बावजूद इस अधिनियममें बुनियादी रद्दो बदल किये बिना उन लोगोंमें सुरक्षाकी भावना पैदा नहीं की जा सकती। किसी एक स्थानके लिए दिये गये व्यापारिक परवानोंको दूसरे स्थानके लिए करानेमें हर बार कठिनाई पड़ती रहती है। परवाना अधिकारी अक्सर ही अपनी बातपर अड़ जाते है और कुछ भी नहीं सुनते। अभी कुछ दिन पहले ही नेटाल प्रान्तीय परिषदके एक सदस्यने ब्रिटिश भारतीय दूकानदारोंको मौजूदा परवानों तकसे वंचित करनेके आशयका एक प्रस्ताव पेश किया था।[२]

नेटालकी बस्तियाँ

६. हम आपका ध्यान माननीय सपरिषद-गवर्नरके सामने पेश किये गये इस विषयसे सम्बन्धित प्रार्थनापत्रकी ओर आकर्षित करते हैं। हमको अभीतक मालूम नहीं कि माननीय गवर्नरने उसके बारेमें क्या निर्णय किया है। लेकिन हमें भरोसा है कि नेटालके ब्रिटिश भारतीयोंको ऐसे अधिकारसे वंचित नहीं किया जायेगा, जो अभी तक उनको प्राप्त था ।

गिरमिटिया मजदूर

७. हम इस अवसरपर नेटालके ब्रिटिश भारतीय समाजकी ओरसे आपको नेटालमें भारतसे गिरमिटिया मजदूरोंका भेजा जाना बन्द करनेके निर्णयके लिए सादर धन्यवाद देते हैं।[३] हम इस निर्णयका न केवल इसलिए स्वागत करते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी उचित आकांक्षाओंके प्रति भी आम तौरपर यूरोपीयोंका रुख शत्रुतापूर्ण है बल्कि इसलिए भी स्वागत करते है कि हमारी विनम्र रायमें

  1. विक्रेता परवाना अधिनियमके विरुद्ध भारतीयोंकी शिकायतों के लिए देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १३०-३५; ४, पृष्ठ १०४.०५, १६९; खण्ड ५, पृष्ठ २८५ और खण्ड ६, पृष्ठ १०९, ३६९-७० तथा ३९९-४००।
  2. हयूलेटने नेटाल प्रान्तीय परिषद्में ४ अप्रैलको एक प्रस्ताव पेश किया था जिसमें संव-संसदसे अनुरोध किया गया था कि वह परिषद्को “ प्रान्त-भर में व्यापारिक परवाने मंजूर करने या सभीको वापस लेनेका अधिकार" दे दे। उनके अपने शब्दों में नेटालको “यह निश्चित करनेका अधिकार होना चाहिए कि कौन व्यापार करे और कौन न करे" और उनका उद्देश्य नेटाल सरकारको वे अधिकार पुनः दिलाना था जो उसे नये नेटाल परवाना विधेयक द्वारा प्रदान किये जानेवाले थे (खण्ड ८, पृष्ठ २१३-१४ और २२९-३१) और साम्राज्य सरकारने जिसकी अनुमति नहीं दी थी (खण्ड ९, पृष्ठ ४२०)।
  3. देखिए, खण्ड १०, पृष्ठ १८२-८३ और ४२५-२६ ।