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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


गिरमिटिया प्रथा अपने आपमें बुरी है और गुलामी प्रथासे बहुत कुछ मिलती-जुलती है। हमें पूर्ण विश्वास है कि ब्रिटिश भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिका-भरमें जो कष्ट झेलने पड़े हैं, उनमें से अधिकांश, एक बड़ी सीमा तक, भारतसे गिरमिटिया मजदूरोंको लाकर दक्षिण आफ्रिकाकी भारतीय जनसंख्यामें कृत्रिम रूपसे वृद्धि कर देनेके कारण है। हमारा सादर निवेदन है कि गिरमिटकी अवधि पूरी हो जानेपर भारतीय स्त्री और पुरुष मजदूरोंसे ही नहीं उनके बच्चोंसे भी जो तीन पौंड प्रति वर्ष कर वसूल किया जाता है वह बड़ा क्रूर और अत्याचारपूर्ण है। और जब भारतसे गिरमिटिया मजदूरोंका कतई भेजा जाना बन्द किया जानेवाला है तब तो इस प्रकारके करका कोई औचित्य ही नहीं रह जाता। इस करारोपणके कारण पुरुषोंपर अत्याचार ढाये गये हैं, स्त्रियोंकी लाजपर आँच आई है और कई भारतीय युवकोंकी जिन्दगियाँ बरबाद हो चुकी हैं। हमारा विनम्र मत है कि मानवता और ब्रिटिश साम्राज्य दोनों ही के हितकी दृष्टिसे इस करको बिलकुल हटा दिया जाना चाहिए। यहीं हम यह भी कह देना चाहते हैं कि कर थोपनेवाले अधिनियममें थोड़ा संशोधन करके स्त्रियों बारेमें जो थोड़ी-बहुत राहत देने का मंशा था वह भी लगभग सर्वथा विफल हो गया है।

उपसंहार

८. अन्तमें, हमारी प्रार्थना है कि सम्राट्की सरकार इस अभ्यावेदनमें उल्लिखित विषयोंपर यथायोग्य विचार करे और जाति, रंग और धर्मके भेदभावसे परे समानतापूर्ण व्यवहारके बारेमें समय-समयपर मन्त्रियों द्वारा की गई घोषणाओंके अनुसार, संघमें ब्रिटिश भारतीयोंको न्याय और समानताके सन्तोषजनक आधारपर, प्रतिष्ठा दे।

दाउद मुहम्मद

दादा उस्मान

मुहम्मद कासिम आँगलिया

[अंग्नेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, २०-५-१९११