हरिलाल सुबह वापस आया । वह जान-बूझकर कोई उलटा कदम नहीं उठायेगा, ऐसा मैं मानता रहा हूँ और अब इस बातको और ज्यादा मानता हूँ। देखें, अब वह आगे क्या करता है।
मोहनदासके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०८५) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी
६२. पत्र : गृह-मन्त्रीके कार्यवाहक निजी सचिवको
[जोहानिसबर्ग]
मई १८,१९११
कार्यवाहक निजी सचिव,
गृहमन्त्री
प्रिय महोदय,
एशियाई समस्याके अस्थायी समाधानके सम्बन्धमें जनरल स्मट्सके सम्मुख निम्नलिखित बातें प्रस्तुत करनेकी कृपा करें।
जबतक जनरल स्मट्ससे मेरे पिछले मासकी २९ तारीखके पत्रका[१] उत्तर प्राप्त नहीं हो जाता, तबतक सत्याग्रहियोंको दुविधामें रहना होगा। उन्होंने अपने-अपने धंधे फिरसे शुरू किये हैं। जोजेफ रायप्पन अभी जोहानिसबर्ग में जनरल स्मट्सके उत्तरी राह देख रहे है और इसी प्रकार अन्य सत्याग्रही भी निठल्ले बैठे हैं। जिन्होंने जानबूझकर अपना काम बन्द कर दिया था, वे अभीतक उसी अवस्थामें है। जैसा कि जनरल स्मट्सको विदित है, यद्यपि समझौता एक प्रकारसे बिलकुल सम्पन्न हो चुका है, किन्तु सत्याग्रही कैदी अभीतक जेलमें है।
और अभीतक हम लन्दन तथा भारतमें मित्रोंको यह सूचना नहीं दे पाये हैं कि समझौता वास्तवमें सम्पन्न हो चुका है। साम्राज्य-सम्मेलन[२] निकट आ रहा है, इसलिए हम इंग्लैंडके मित्रोंको निश्चित सूचना देनेके लिए व्यग्न है। अत: प्रार्थना है कि इस पत्रका उत्तर जल्दी ही देनेकी कृपा की जाये। क्या आप कल टेलीफोनसे कोई निश्चित जानकारी दे सकेंगे?
आपका विश्वस्त
मो० क० गांधी
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखे गये अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५५३२) की फोटो-नकल तथा २७-५-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन 'से।
- ↑ देखिए “पत्र : ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ४७.५० । गृहमन्त्री कार्यवाहक सचिवने गांधीजीके इस पत्र और वादके मई ४ के एक पत्र (पृष्ठ ५८-६०) के दो उतर भेजे थे: पहले मई १९ को एक लम्बा पत्र (परिशिष्ट ५) भेजा और उसके बाद मई २० को एक तार (परिशिष्ट ६) भेजा।
- ↑ सम्मेलन मई २२ को होनेवाला था; देखिए “ पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको", पृष्ठ २७ ।