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पत्र : गृह मन्त्रीको


प्राप्त करनेके लिए ही तुम्हें वहाँ जाना है। इसके सिवा कोई और बात नहीं है। तुम्हारी तैयारी पूरी होते ही तुम्हें भेज देंगे।

मणिलालके नाम लिखा हुआ मेरा पत्र[१] तुम पढ़ोगे ही, इसलिए हरिलालके बारेमें ज्यादा नहीं लिखता। हरिलाल ठक्कर साथके पत्रमें क्या कहता है ?

मोहनदासके आशीर्वाद


[पुनश्चः]

सन्तोक तथा अनीको श्रीमती वॉगलको बाजारके[२] लिए कुछ-न-कुछ सी कर भेजना है, यह बात याद रखना।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती (सी० डब्ल्यू० ५०९०) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

६५. पत्र : गृह-मन्त्रीको

[३]

जोहानिसबर्ग
मई १९, १९११

गृहमन्त्री,
प्रिटोरिया
महोदय,

मुझे आपका आजकी तारीखका पत्र[४] प्राप्त हुआ।

यदि आप मेरे इसी चौथी तारीखके[५] पत्रको पुन: पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि उसमें उल्लिखित १८० सत्याग्रहियोंकी पात्रता वैसी सीमित नहीं है, जैसी आपने अपने पत्रके अनुच्छेद 'ग' में बताई है। आपने जिस वर्गका उल्लेख किया है, उसके अतिरिक्त इस संख्या (१८०) में वे लोग[६] भी सम्मिलित है जो स्वेच्छया प्रणाली या किसी भी एशियाई कानूनके अन्तर्गत कभी प्रार्थनापत्र नहीं दे सके थे। समाज तीन शिक्षित मुसलमानोंके सम्बन्धमें दी गई रियायतके लिए आभारी है।

  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. इसका उद्घाटन १५ नवम्बर, १९११को विलियम हॉस्केनने किया था।
  3. पत्रका उत्तर (एस० एन० ५५३६) तार द्वारा प्राप्त हुआ था; देखिए परिशिष्ट ६ ।
  4. देखिए परिशिष्ट ५।
  5. देखिए, “पत्र : ई०एफ० सी०लेनको", पृष्ठ ५८-६० ।
  6. परिशिष्ट ६ में दिये गये उत्तरसे स्पष्ट है कि ये वे व्यक्ति हैं जिन्हें बोअर युद्धके पहले ३ वर्षके निवासके आधारपर अधिवास-सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हो चुके थे । अधिवास-सम्बन्धी यह अधिकार ही १९०८ के संघर्षका एक मुख्य प्रश्न था और स्मट्सने आगे चल कर इसे मान भी लिया था। देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २८१-८३, २९७-९९, ३३४-३७, ३५५-५७ और ३९७९८ ।