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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


मेरे गत मासकी २९ तारीखके पत्रमें अस्थायी समझौतेकी जो व्याख्या की गई थी, उसका आपके पत्रमें[१] कोई खण्डन नहीं है; इससे मैं यह समझ रहा हूँ कि मन्त्रीने उसे पुष्टि दे दी है।

जिन लोगोंको जाली प्रमाणपत्र रखने या काममें लानके अपराधमें सजाएँ दी गई हैं उनकी रिहाईकी कोई प्रार्थना कभी नहीं की गई। ऐसे लोगोंके सत्याग्रही होनेका दावा भी कभी नहीं किया गया।

चूंकि संघ द्वारा इंग्लैंड और भारतके मित्रोंको स्थितिके सम्बन्धमें तारसे सूचना दी जानी है, इसलिए मैं इस पत्रका उत्तर तारसे दिये जाने की प्रार्थना करता हूँ।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरों में संशोधित रिचकी लिखावटमें प्राप्त अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५५३४) की फोटो नकल तथा २७-५-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन 'से।

६६. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

जोहानिसबर्ग
मई १९, १९११

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

अब जो निष्क्रिय हो गया है, उस प्रवासी अधिनियमके सम्बन्धमें पूछताछ करते हुए आपका तार मिला था। मैं निश्चयपूर्वक नहीं जानता कि अब उसके बाद आप मुझसे यह अपेक्षा करते है अथवा नहीं कि मैं आपको नियमित रूपसे पत्र लिखता रहूँ। मैं अपनी आँखों देख चुका हूँ कि आप अन्य बहुत-से कामोंमें व्यस्त रहते हैं, इसीलिए मेरी सदा कोशिश रही है कि पत्र लिखकर आपको परेशान न करूँ। कलकत्ते में जब मुझे आपके साथ ठहरनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था,[२]उस समय भी आप अत्यधिक व्यस्त रहा करते थे। श्री पोलकने मुझे यह अद्यतन जानकारी दी है कि पिछली बार जब वे आपसे मिले थे उस समय आप उससे भी कहीं ज्यादा व्यस्त थे। तथापि मुझे लगता है कि समय-समयपर यहाँकी स्थितिसे आपको अवगत कराना जरूरी है। यद्यपि मैं स्वाभाविक रूपसे यह मानता हूँ कि पिछले चार वर्षके सत्याग्रहके बिना कदापि कुछ नहीं हो सकता था, फिर भी मेरा निश्चित मत है कि

  1. इस पत्रका दूसरा साधन-सूत्र गांधीजीकी फाइलमें प्राप्त मसविदा (एस० एन०५५३४) है। उसमें ४ तारीख' का उल्लेख है । यह तारीख बादमें फोनपर ठीक करा दी गई थी। देखिए परिशिष्ट ६ ।
  2. सन् १९०१ में, जब श्री गोखले कलकत्ते में रह रहे थे।