पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कार्यकर्तासे उन्हें पढ़नको कहनेकी कृपा करें और फिर जो कदम उठाना उचित समझें, उठायें। ये प्रार्थनापत्र 'इंडियन ओपिनियन में मिलेंगे।

लगभग नवम्बरके आरम्भमें श्री और श्रीमती पोलक भारत पहुँच जायेंगे, और उस समय श्री पोलक आपको आवश्यक सहायता दे सकेंगे। इसमें तो अब सन्देह नहीं कि अस्थायी समझौता हो जायेगा, फिर भी हम जनरल स्मट्स के अन्तिम उत्तरकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। जनरल स्मट्सका वचन अगले वर्ष पूरा न किये जानेकी सम्भावनाको ध्यानमें रखते हुए सभी सत्याग्रहियोंसे तैयार रहनेके लिए कह दिया गया है। टॉल्स्टॉय फार्म इसीलिए कायम रखा जा रहा है, लेकिन सत्याग्रह कोषसे यथासम्भव कमसे कम खर्च किया जाये, ऐसी कोशिश है। मैं अप्रैलके अन्ततक किये गये खर्चका लेखा तैयार कर रहा हूँ, जिसे मैं स्थितिका सिंहावलोकन करते हुए श्री रतन टाटाके नाम अपने खुले पत्रमें दूंगा।[१] श्री पोलकके दौरेका व्यय स्थानीय तौरपर जमा किये जा रहे चन्देसे पूरा किया जा रहा है।

आशा है आप स्वस्थ होंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीकी लिखावटमें संशोधित तथा उनके हस्ताक्षरयुक्त टाइप की हुई दफ्तर अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ३८०२) की फोटो-नकलसे ।

६७. पत्र: नॉक्सको

[जोहानिसबर्ग]
मई १९,१९११

प्रिय श्री नॉक्स[२],

आपने 'इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित जो लेख भेजनेको कहा था, उसे न भेज पानेके लिए मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ। जिन दिनों आपने टेलीफोन किया था उन्हीं दिनों मैंने 'इंडियन ओपिनियन' की फाइलमें उसे तलाश करवाया; किन्तु वह लेख नहीं मिला। चूंकि मेरे पास अद्यावधि कोई विषय-सूची नहीं है, इसलिए उसको ढूंढ़ना कुछ कठिन है। मैंने आपसे टेलीफोनपर सम्पर्क करनेका प्रयत्न किया था, किन्तु वह नहीं हो सका। उसके बाद मुझे इसका ध्यान नहीं रहा। अब आपने फिर याद दिलाई है। जब श्री पोलक लन्दन जाते हुए यहाँ दो दिन ठहरे थे तब मैंने उनसे पूछा था कि क्या उन्हें उक्त समीक्षाके प्रकाशनकी तारीख याद है। उन्होंने

  1. देखिए सार्वजनिक पत्र: रतन जे० टाटाको", पृष्ठ २४५-४९ ।
  2. दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके आन्दोलनके प्रति सहानुभूति रखनेवाले एक यूरोपीय ।