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७३. भेंट: रायटरके प्रतिनिधिको

जोहानिसबर्ग
मई २३, १९११

श्री गांधीने रायटरके प्रतिनिधिको भेंट देते हुए बताया कि समझौतेके[१] अनुसार अगले अधिवेशनमें १९०७ के एशियाई कानूनको रद कर दिया जायेगा और प्रवासके सम्बन्धमें कानूनी समानता फिरसे दे दी जायेगी। अनाक्रामक प्रतिरोध बन्द करनेके प्रतिदानके रूपमें सरकार दस सत्याग्रहियोंके, शिक्षाके आधारपर, ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके अधिकारको मान्यता दे रही हैं[२] और उन सत्याग्रहियोंके निवासके अधिकारको वापस कर रही है, जिन्हें पहले यह अधिकार प्राप्त था। सरकार शीघ्र ही कैदमें पड़े सत्याग्रहियोंको[३] भी छोड़ने जा रही है, और श्रीमती सोढाको वह दे देगी।

[अंग्रेजीसे]
टाइम्स ऑफ इंडिया,२५-५-१९११

७४. पत्र : एशियाई-पंजीयकको[४]

मई २६, १९११

एशियाई-पंजीयक
प्रिटोरिया
महोदय,

मैं इसके साथ सेवामें उन ३८ चीनीयोंके नामोंकी सूची[५] भेज रहा हूँ जो समझौतेकी शोंके अनुसार या और किसी विधि-सम्मत रूपसे पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र

 
  1. देखिए, “पत्र : गृह-मन्त्रीको", पृष्ठ ७७-७८ और " आखिरकार", पृष्ठ ८९-९२ तथा परिशिष्ट ५ और ६ में वर्णित अस्थायी समझौता।
  2. देखिए परिशिष्ट ४, ५ तथा ६ ।
  3. सन् १९०८ के सत्याग्रह संघर्षके दौरान ३० भारतीय तो निष्कासित करके भारत भेज दिये गये थे या स्वयं ही भारत चले गये थे। यहां तात्पर्य उन्हीं ३० लोगोंसे तथा कुछ ऐसे भारतीयोंसे है, जिन्होंने स्वेच्छया पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दिये थे, लेकिन जिनके प्रार्थनापत्र नामंजूर हो गये थे। इस दूसरी श्रेणीके लोगोंको न्यायालयोंमें अपील करनेका अधिकार दिया गया था ।
  4. इस पत्रका मसविदा सम्भवत: गांधीजी द्वारा तैयार किया गया था, क्योंकि यह अगस्त २१, १९११ के जिस एक अन्य पत्र (देखिए पृष्ठ १४२-४३) के साथ उनके कागजोंमें मिला है; उसका विषय भी यही है और वह गांधीजीके हस्ताक्षरों में है । उक्त पत्र एशियाई-पंजीयकके नाम है, किन्तु ये दोनों पत्र न तो इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुए और न इस बातका कोई प्रमाण मिलता है कि ये एशियाई-पंजीयकको भेजे गये थे । साधारणतया अधिकारियोंको भेजे गये पत्र इंडियन ओपिनियन प्रकाशित किये जाते थे।
  5. यह उपलब्ध नहीं है।