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७६. आखिरकार!


आखिरकार ट्रान्सवालके एशियाई प्रश्नपर एक अस्थायी समझौता हो गया है। और ट्रान्सवालके भारतीय और चीनी, कमसे-कम आठ महीनके लिए, बिना किसी झंझटके अपने रोजमरेके धंधोंमें फिर लग सकते हैं। इस सम्बन्धमें गृह-मन्त्री (मिनिस्टर आफ द इंटीरियर) और श्री गांधीके बीच जो पत्र-व्यवहार[१] हुआ है, उससे प्रकट होता है कि इस बातकी पूरी-पूरी सावधानी बरती गई है जिससे दोनों पक्ष एक-दूसरेको अच्छी तरह समझें और किसी भी प्रकारकी गलतफहमीकी गुंजाइश न रहे। फिर भी कोई मामूली पाठक उससे समझौतेके बारेमें बहुत नहीं समझ पायेगा। इस पत्र व्यवहारमें जिन मुद्दोंकी चर्चा की गई है, उन्हें ठीकसे समझनेके लिए एशियाई कानूनोंको तफसीलोंकी जानकारी होना अनिवार्य है। परन्तु यह खुशीकी बात है कि वास्तवमें समझौता जिन बातोंके बारेमें हुआ है, उन्हें समझनेके लिए इन तफसीलोंकी जानकारीकी जरूरत नहीं है। पाठकोंको याद होगा कि सन् १९०९ में भारतीयोंका जो शिष्टमण्डल लन्दन गया था उसने वहाँ एक बयान दिया था जिसमें बताया गया था कि दो बातें करनेसे सत्याग्रही सन्तुष्ट हो सकते हैं; अर्थात्, (१) सन् १९०७ का एशियाई कानून २ रद कर दिया जाये; और (२) ट्रान्सवालमें प्रवेशके सम्बन्धमें सबको समान सुविधाएँ दी जायें। हाँ, इस दूसरी बातके सम्बन्धमें यह भी कहा गया था कि इतना मान लिया जाये कि प्रवासी कानूनके अमलमें भेदभाव किया जा सकता है, किन्तु साथ ही इस बातका भी भरोसा दिलाया जाना चाहिए कि कानूनमें शिक्षा सम्बन्धी जो भी शर्त रखी जायगी उसके आधारपर कमसे-कम छ: शिक्षित एशियाइयोंको ट्रान्सवालमें प्रतिवर्ष प्रवेश दिया जायेगा।[२]

कौमकी तरफसे यह भी कहा गया था कि यदि ये माँगें मंजूर कर ली गई तो जो लोग प्रत्यक्ष रूपसे लड़ रहे हैं वे आवश्यकता पड़नेपर अपने व्यक्तिगत अधिकारोंको छोड़ देंगे और सत्याग्रह बन्द कर देंगे। यदि यह बात मान ली जाती तो श्री सोराबजी और उनके दूसरे साथी- जो शिक्षित भारतीयोंकी हैसियतसे ट्रान्सवालमें आये थे[३] - अपने लिए किसी भी अधिकारकी मांग नहीं करते और ट्रान्सवालसे चले जाते। लड़ाई पुनः शुरू होनेके कारण जिनके नाम पंजीकृत नहीं हो सके थे वे भी चुपचाप अपने अधिकारको छोड़ देते और इस तरह अपनी रोजीसे वंचित

  1. देखिए पृष्ठ ३९-४१, ४७-५०,५८-६०, ७७-७८ और ८३-८४ तथा परिशिष्ट १, २, ४, ५ एवं६ ।
  2. देखिए खण्ड ९, पृष्ठ २९५-९६ ।
  3. सोराबजी शिक्षित भारतीयोंके प्रवेशाधिकारकी परीक्षा करनेके खयालसे ट्रान्सवाल आये थे; उनपर चलाये गये तीन मुकदमोंके लिए देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३३७-४०, ३४७-५१ और ३७०-७१।