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पत्र: हरिलाल गांधीको


चाहिए। मैं जो कुछ कहता हूँ, उनमें से तुम्हें जो विचार पसन्द आयें, तुम उन्हीं पर आचरण करना। मैं तो यह चाहता हूँ कि तुम्हारा विकास स्वतंत्र रीतिसे हो। तुम्हारा उद्देश्य अच्छा है, यह मैं जानता हूँ। इसलिए जहाँ तुम्हारे विचार गलत हों, वहाँ वे अपने-आप सुधर जायेंगे।

कैदी अभी तक छूटे नहीं है, किन्तु शीघ्र ही छूट जायेंगे।[१]

पंजीयनकी अर्जी देनेके विषयमें मैंने तुम्हें जो तार[२] किया था, मालूम होता है कि वह तुम तक नहीं पहुँचा। यह तार मैंने नानजी दुलभदासके पतेपर किया था।

वहाँ 'इंडियन ओपिनियन' ध्यानपूर्वक पढ़ते रहना।

ये गुजराती पुस्तकें बहुत पढ़ने लायक है : 'काव्य-दोहन', 'पंचीकरण', 'मणि-रत्नमाला', 'दासबोध', 'श्री योगवाशिष्ठ' का छठवां प्रकरण- इसका हिन्दी अनुवाद उपलब्ध है, कवि नर्मदाशंकरके धर्म-विषयक विचार, रायचन्दभाईके लेखोंके दो खण्ड।

'करण घेलो' आदि पुस्तकें तो है ही। यह पुस्तक गुजराती भाषाकी प्रौढ़ताकी परिचायक है। टेलरकी व्याकरणकी पुस्तक और उसमें उसके द्वारा लिखी हुई प्रस्तावना बहुत अच्छी है। यह प्रस्तावना है या उसी पुस्तकमें गुजराती भाषापर लिखा हुआ कोई विशेष निबन्ध है, यह मैं भूल गया हूँ।

तुलसीदासजीकी रामायणका भी अच्छी तरह अभ्यास करते रहो ऐसी मेरी सलाह है। 'इंडियन होमरूल' के अन्तमें मैंने जिन अंग्रेजी पुस्तकोंकी सूची दी है, उन पुस्तकोंमें से कई पठनीय है। संस्कृतका बढ़िया अध्ययन करनेके विषयमें मेरी यह राय है कि हमेशा सबसे पहले उसे बाँचो; बाँचोगे तो बहुत-कुछ याद हो जायेगा और दिमागमें बैठ जायेगा। पहली पुस्तक अच्छी तरह पढ़नके बाद फिर यह विषय कठिन नहीं लगेगा। पहली पुस्तक पक्की किये बिना दूसरी हाथमें न लेना। जो भी संस्कृत श्लोक पढ़नेमें आये, उसका गुजराती अर्थ समझनेकी कोशिश तुरन्त होनी चाहिए।

मुझे पत्र सविस्तार और नियमपूर्वक लिखते रहना।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल गुजराती पत्रकी फोटो-नकल (एस० एन० ९५३२) से।

  1. देखिए, “पत्र: एशियाई पंजीयकको", पृष्ठ ८८ ।
  2. उपलब्ध नहीं है।