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८१. क्रूगर्सडॉर्पके आन्दोलनकारी


क्रूगर्सडॉर्पमें हाल ही में एक सभा हुई थी, जिसमें प्रान्तीय विधान परिषदके सदस्य श्री वॉन वेयरेनने भाषण दिया था। उसका विवरण[१] क्रूगर्सडॉर्पके किसी पत्रमें छपा था, जो हम इसी अंकमें अन्यत्र दे रहे हैं। दूसरे प्रश्नोंके साथ-साथ इस सभामें “कुलियों" के प्रश्नपर भी चर्चा हुई और सर्वानुमतिसे एक ऐसी संस्था बनानेका निश्चय किया गया जिसके सदस्य "कुली" व्यापारियोंकी मदद न करनेके लिए प्रतिज्ञा बद्ध होंगे। हमें ज्ञात हुआ है कि इस संस्थाकी समितिने एक प्रार्थनापत्र तैयार किया है. जिसमें सरकारसे निवेदन किया गया है कि वह ठेलेवालों और फेरीवालोंको देहाती क्षेत्रोंमें न जाने दे, क्योंकि ये गश्ती सौदागर देशको लाभके बजाय हानि ही अधिक पहुंचाते हैं। क्रूगर्सडॉर्पका यह रूप कुछ पहले-पहल ही सामने नहीं आया है। उस प्रसिद्ध गोरा-संघ (व्हाइट लीग)[२] का जन्म, जो अब निष्क्रिय हो गया है, इसी नगरमें हुआ था । लेकिन सब देख सकते है कि उसे अपने प्रयासोंमें कोई सफलता नहीं मिल सकी। इन एशियाई-विरोधी लोगों और संघोंको सफलता क्यों नहीं मिलती? इसलिए कि इनकी बुनियादमें ही सड़ांध है; इनका जन्म स्वार्थ तथा लालचसे होता है; और इनके प्रत्येक सदस्यको अपना ही उल्लू सीधा करनेसे मतलब होता है। इनके सदस्योंमें एक भी ऐसा नहीं मिलेगा जो दूसरेको नुकसान पहुँचाकर अपना मतलब गाँठनेकी इच्छा न रखता हो। परन्तु किसी एशियाईसे होड़ होनेपर उसे बर्बाद करनेके लिए ये सब एक हो जाते हैं। तब ये प्रतिस्पर्धी व्यापारी यहाँतक कह जाते है कि फेरीवालों तथा ठेलेवालोंको देहाती क्षेत्रोंमें नहीं जाने देना चाहिए। इतना तो सब मानेंगे कि दूरके इलाकोंमें रहनेवाले लोग अपनी जरूरतोंके लिए इन उपयोगी दुकानदारों पर ही निर्भर करते हैं, और वे तो कभी नहीं कहते कि इनसे लाभके बजाय हानि होती है। सच तो यह है कि इन लोगों और संघोंकी सारी कोशिशें साफ तौरपर स्वार्थ से भरी हुई हैं। उन्हें अपने अलावा और किसीके हितकी चिन्ता नहीं है। उन्हें तो केवल इसी बातकी लगी रहती है कि कोई उनकी होड़में खड़ा न होने पाये ताकि वे अधिकसे-अधिक मुनाफा कमा सकें।

यों इन आन्दोलनकारियोंसे बहुत अधिक डरनेका कोई कारण नहीं है। फिर भी ब्रिटिश भारतीय संघ उनकी हलचलोंपर पूरी-पूरी नजर रखेगा ताकि इन छोटे-छोटे इज्जतदार व्यापारियोंके अधिकारों और रोजीको हानि न पहुँचे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन,३-६-१९११

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
  2. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ १५८ ।