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८२. सत्याग्रहसे क्या मिला?


अनेक भारतीयोंने कई बार सवाल किया है कि सत्याग्रहसे क्या लाभ हुआ है ? उनके हिसाबसे तो लोग जेलमें ढूंसे गये, दुःख सिरपर आया और अन्तमें अधिकसे-अधिक यह हुआ कि नये आनेवालोंको समानताका ऐसा कानूनी अधिकार मिला, जो न किसीकी समझमें आ सकता है और न किसी मसरऊका है। सबसे बड़ा परिणाम यही निकला कि बहुत पढ़े-लिखे कुछ ऐसे व्यक्ति, जिनकी हमें शायद जरूरत ही नहीं पड़ेगी, प्रतिवर्ष ट्रान्सवालमें[१] आते रहेंगे। इस ख्यालसे कि बात इस तरह सोचनेवालोंकी समझमें आ जाये, हम संघर्षके नतीजे दे रहे हैं। वे क्रमशः निम्नलिखित हैं:

  1. भारतीय समाजकी शपथ[२] पूरी हुई। कहावत है, जिसकी नाक बची उसका सब-कुछ बच गया।
  2. खूनी कायदा[३] रद किया जायेगा।[४]
  3. सारे भारतमें हमारी तकलीफोंके प्रति लोगोंकी दृष्टि गई[५]
  4. सारे संसारको हमारे संघर्षके बारेमें मालूम हो गया और सबने भारतीयोंके साहसकी प्रशंसा की।
  5. नेटालमें गिरमिटिया मजदूरोंके प्रवासपर प्रतिबन्ध लगानेवाला कानून बना।[६]
  6. नेटालके परवाना कानूनमें उपयोगी संशोधन हुआ -इस संशोधनका एक कारण सत्याग्रहका संघर्ष था।[७]

११-७

  1. और
  2. सितम्बर ११, १९०६को जोहानिसबर्गके एम्पायर थियेटरमें हुई भारतीयोंकी एक विशाल सभामें यह शपथ ली गई थी कि वे एशियाई कानून संशोधन अध्यादेशको स्वीकार नहीं करेंगे ।
  3. एशियाई पंजीयन अधिनियम (१९०७का अधिनियम २)।
  4. देखिए परिशिष्ट ४ और ५ ।
  5. ट्रान्सवालके संघर्षकी भारतमें व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। सन् १९०८ और १९०९में भारतमें हुई रोषपूर्ण प्रदर्शन सभाओंके विवरणके लिए देखिए, खण्ड ८, पृष्ठ ५११ और खण्ड ९, पृष्ठ ७९-८०, ४३६,४५४, ५०४-०५ ।
  6. दिसम्बर २९, १९०९ को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसने गिरमिटिया मजदूरोंकी भर्ती के विरुद्ध प्रस्ताव पास किया और २५ फरवरी, १९१०को श्री गोखलेने भारतीय विधान परिषदें इसी आशयका एक प्रस्ताव पेश किया जो सर्वसम्मतिसे स्वीकृत हुआ । १९०८ का भारतीय प्रवासी अधिनियम श्री गोखलेके प्रस्तावक ध्यानमें रखते हुए संशोधित किया गया । १ अप्रैल, १९११ को भारत सरकारने एक विज्ञप्ति द्वारा १ जुलाई, १९११ से भारतीय मजदूरोंको नेटाल भेजना निषिद्ध कर दिया । देखिए, खण्ड १०, पृष्ठ १८२-८३, १८५-८६, २१६, २३७ और ४२५-२६ भी।
  7. नेटाल व्यापारी परवाना अधिनियम (१८९७का अधिनियम १८) के अधीन पुराने व्यापारी- परवानोंके परवाना-अधिकारी द्वारा रद कर दिये जानेपर अदालत में अपील नहीं की जा सकती थी। वोअर युद्धके बाद नेटालके भारतीयों द्वारा साम्राज्य-सरकारसे बार-बार यह कहनेपर कि उक्त धाराका उनके हितों के विरुद्ध उपयोग किया जा रहा है, उपनिवेशकी सरकारने टाउन कौंसिलोंके नाम एक परिपत्र जारी किया कि वे कानूनका न्यायोचित और बुद्धिसम्मत प्रयोग करें अन्यथा उस कानूनपर पुनर्विचार करना