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८६. खड़ा


नगरपालिका परिषद अध्यादेशका जो मसविदा ट्रान्सवालकी प्रान्तीय विधान परिषदमें पेश किया जानेवाला है वह एक अत्यन्त सख्त कानून है। ब्रिटिश भारतीयों पर इसके जिस भागका असर पड़नेवाला है उसके बारेमें ब्रिटिश भारतीय संघने अपना विरोध समयपर भेज दिया है।[१] निःसन्देह इसका सबसे अधिक नुकसानदेह खण्ड वह है जिसके द्वारा नगरपालिका परिषदोंको फेरीवालों और अन्य व्यापारियों के परवानोंपर सम्पूर्ण सत्ता दे दी गई है।

स्वर्ण अधिनियम (गोल्ड लॉ) को कस्बा-कानून (टाउनशिप्स ऐक्ट) के साथ पढ़ा जाये तो उसका सीधा अर्थ होता है एशियाई दूकानदारोंका सर्वनाश; और यह अध्यादेश जिस रूपमें तैयार किया गया है, यदि उसी रूपमें यह मंजूर कर लिया गया तो इसका भी अर्थ एशियाई फेरीवालोंका सर्वनाश होगा। सभी जानते हैं कि ट्रान्सवालके भारतीयोंमें से अधिकतर लोग फेरी लगाकर ही अपनी आजीविका कमाते हैं। और यह तो प्रत्यक्ष ही है कि यह कानून इन्हींको ध्यानमें रखकर बनाया गया है। इस प्रकार जब कि एक ओर जनरल स्मट्स सत्याग्रहियोंको दिये गये अपने वचनका पालन करनेके लिए अगले वर्ष एक कानून पास कराना चाहते हैं और कहते हैं कि उनका इरादा स्थायी निवासी भारतीयोंके साथ न्याय और समानताका व्यवहार करनेका है; दूसरी ओर ट्रान्सवालके भारतीयोंके चारों ओर एक घेरा खड़ा किया जा रहा है। यहाँ यह बात महत्वहीन है कि जनरल स्मट्सको इस सबकी जानकारी है या नहीं। यदि अध्यादेशका यह मसविदा ही जनरल स्मट्स के न्याय और समानताका सही नमूना है तो हमारी समझमें इन शब्दोंका भारतीय समाज जो अर्थ लगाता है वह उनके अर्थसे एकदम भिन्न है। फिर भी हम आशा करते हैं कि प्रान्तीय विधान परिषदके।

  1. इस अध्यादेशके परिणामस्वरूप नगरपालिकाके उन विनियमों और समादेशोंका एकीकरण होता था जिनमें से अधिकॉशके विरुद्ध ट्रान्सवालके भारतीयोंने किसी-न-किसी समय आपत्ति प्रकट की थी। इससे नगर-परिपदोंको प्रान्तीय कानूनके आधारपर इन विनियमों और समावेशोंपर अमल करनेका भी अधिकार प्राप्त होता था । उदाहरणार्थ, यह सरकारको मुख्य रूपसे निम्नलिखित अधिकार देता था: (क) वह किसी भी एशियाई वस्तीको उखाड़कर नई जगहमें बसा सकती थी। (ख) वह कई प्रकारके परवानोंको जारी करनेसे इनकार कर सकती थी और उसके निर्णयपर न्यायालयोंका कोई बस नहीं चलता । (ग) वह नगरपालिकाकी मतदाता सूचीसे एशियाक्ष्योंके नाम हटा सकती थी। पहले इन सारे उद्देश्योंकी पूर्ति अलग-अलग कानूनों और समादेशोंके द्वारा हो जाती । इस अध्यादेशका एशियाश्यों और विटिश भारतीयोंपर जो असर पड़ता था और उसके विरुद्ध ब्रिटिश भारतीयोंने जो प्रार्थनापत्र दिया था उनके लिए देखिए परिशिष्ट ७ क और ख।