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भाषण : डवनमें-आयोजित सोराबजीकी विदाई-सभामें


सदस्योंके हृदयोंमें सुबुद्धिका उदय होगा और श्री काछलिया द्वारा बताई दिशामें अध्यादेशमें उचित संशोधन कर दिये जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-६-१९११

८७. भाषण : डर्बनम आयोजित सोराबजीकी विदाई-सभामें[१]

[जून १६, १९११]

श्री सोराबजीने सत्याग्रहीके रूपमें अनेक गुण प्रदर्शित किये है। श्री सोराबजीको जो सबसे बड़ा याग्रही कहा गया है, सो बिलकुल सही है। एक दृष्टिसे मैं श्री थम्बी नायडू (करतल-ध्वनि) को उनके समकक्ष मानता हूँ। सच कहें तो श्री थम्बी नायडून जैसा त्याग और बलिदान किया है वैसा त्याग और बलिदान करनेवाला कोई दूसरा व्यक्ति भारतमें भी नहीं मिलेगा। किन्तु श्री सोराबजीको सारे सत्याग्रहियोंसे बड़ा कहा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने दुःखको स्वयं आगे बढ़कर झेला। वे नेटालके थे और नेटालकी तरफसे संघर्षमें शामिल होनेवाले पहले व्यक्ति बने।[२] सत्याग्रहियोंके सम्बन्धमें, जब वे लोग जेलमें थे, कुछ शिकायतें आती रहती थीं; किन्तु श्री सोराबजीकी कभी कोई शिकायत नहीं सुनी गई। उनका स्वभाव अत्यन्त शान्त और मिलनसार है। यह तो श्री थम्बी नायडुके विषयमें भी नहीं कहा जा सकता। उनके [श्री सोराबजीके] मुखसे कभी कोई अपशब्द नहीं निकला। उनमें पारसियोंका एक भी दुर्गुण नहीं है, किन्तु मैंने पारसियोंके सभी ऊँचे गुण उनमें पाये हैं। इतने सद्गुणोंसे विभूषित होने- पर भी उनमें कभी अभिमानकी झलक तक दिखाई नहीं दी। और फिर वे पारसी तो है, परन्तु पहले भारतीय हैं तब पारसी। हिन्दू, मुसलमान और ईसाई सभी उनकी प्रशंसा करते हैं। उनका चौथा गुण यह है कि किसी मार्गको ग्रहण कर लेनेके बाद वे उसपर दृढ़ रहते है और सभी प्रश्नोंको समझनेकी कोशिश करते हैं। श्री सोराबजीके जोड़का व्यक्ति मिलना असम्भव है। ऐसे व्यक्तिका अनुसरण करना ही उसका वास्तविक सम्मान करना है। जब सोराबजी-जैसे अनेक व्यक्ति हमारे देशमें उत्पन्न होंगे तभी उसकी उन्नति हो सकेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-६-१९११

  1. श्री सोरावजी शापुरजी अडाजानियाके सम्मानमें नेटाल भारतीय कांग्रेसने जून १६, १९११ को विदाई समारोह किया था। वे सत्याग्रह आन्दोलनकी समाप्तिके बाद भारत लौट रहे थे।
  2. सोराबजीने शिक्षित भारतीयोंके अधिकारोंकी परीक्षा करनेके खयालसे सर्व प्रथम जून २४, १९०८ में ट्रान्सवालमें प्रवेश किया था; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३१० ।