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९१. पत्र: गो० कृ० गोखलेको


जून १७, १९११


प्रिय प्रोफेसर गोखले,

यह पत्र आपको एक बहुत बड़े सत्याग्रही श्री सोराबजी शापुरजी अडाजानियाके हाथों मिलेगा। इस स्मरणीय संघर्षके दौरान मुझे जो बहुमूल्य अनुभव प्राप्त हुए है, उनमें श्री सोराबजी-जैसे लोगोंका प्राप्त हो जाना सबसे बड़ी चीज है। मुझे विश्वास है कि आप श्री सोराबजीसे मिलकर प्रसन्न होंगे। उनका विचार अगले वर्ष उस समयसे पहले ही लौट आनेका है जब जनरल स्मट्स उस विधेयकको पेश करेंगे जिसके बारेमें उन्होंने वचन दे रखा है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० २२४७) की फोटो-नकलसे। सौजन्य : सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी, पूना

९२. राज्याभिषेक

राज्याभिषेक-दिवसपर समस्त दक्षिण आफ्रिकासे हमारे देशभाइयोंने राज-दम्पति- को भक्तिपूर्ण शुभकामनाएँ भेजी हैं। किसी अनजान आदमीको शायद यह अटपटा मालूम हो कि दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय उस सिंहासनके प्रति क्यों और कैसे अपनी भक्ति प्रकट करते है अथवा उस राज-दम्पतिके राज्याभिषेकपर किस प्रकार खुशियाँ मना सकते है जिसके राज्यमें उन्हें एक आम आदमीको मिलनेवाले साधारण नागरिक अधिकार भी प्राप्त नहीं है। परन्तु यदि वह अजनवी ब्रिटिश संविधानको समझनेका यत्न करे तो फिर इसमें उसे कुछ भी अटपटा नहीं लगेगा। सिद्धान्तत: ब्रिटिश सम्राट् न्यायके क्षेत्रमें समानता और पवित्रताके प्रतीक माने जाते हैं। अपनी तमाम प्रजाके साथ समान व्यवहार सम्राट् जॉर्ज का आदर्श है। प्रजाजनों की प्रसन्नता ही उनकी प्रसन्नताका आधार है। ब्रिटिश राजनयिक ईमानदारीसे इन आदर्शोको प्राप्त करनेका यत्न करते रहते है । यह बिलकुल सही है कि इसमें वे प्राय: बुरी तरह असफल होते हैं। परन्तु प्रस्तुत प्रश्नसे इसका कोई सरोकार नहीं है। ब्रिटिश राजतन्त्रमें राजाके अधिकार सीमित है और वर्तमान परिस्थितिको देखते हुए यह अच्छा भी है। इसलिए जिन्हें ब्रिटिश झण्डेके नीचे रहने में सन्तोष है, वे अपनी अन्तरात्माके साथ बगैर किसी प्रकारकी ज्यादती किये इन शक्तिशाली अधि- राज्योंके (डोमिनियन्स) स्वामी ब्रिटिश सम्राट्के प्रति इस समय अपनी वफादारी प्रकट कर सकते है बल्कि उन्हें करना चाहिए भले ही हमारी तरह वे भी कठोर