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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लड़ना चाहिए। यदि हम न लड़े तो हमारी गिनती मनुष्योंमें न होकर पशुओं होगी। यदि ब्रिटिश संविधान बदल जाये और उसमें यह सम्मिलित कर लिया जाये कि गोरों और कालोंमें समानता नहीं हो सकती तो हम उस संविधानके प्रति भक्त नहीं रह सकेंगे, अर्थात् तब हमें उसका विरोध करना चाहिए। उस समय भी हम एक निश्चित सीमा तक बादशाहके प्रति राजभक्त रह सकते हैं। ब्रिटिश संविधान पद्धतिकी यही खूबी है। वह निश्चित सीमा कौन-सी है, यह विचार करनेकी आवश्यकता अभी नहीं है; क्योंकि यह प्रश्न फिलहाल उपस्थित नहीं होता।

यह स्मरण रखना चाहिए कि ब्रिटेनके लोग स्वयं रक्तकी नदियाँ बहानेके बाद उस वस्तुको प्राप्त कर सके हैं जिसे वे स्वतन्त्रता कहते हैं। सच्ची स्वतन्त्रता तो उन्हें भी लेनी शेष है। पर हमने तो सच्ची या झूठी किसी भी प्रकारको स्वतन्त्रता के लिए अपना रक्त नहीं बहाया और कष्ट नहीं सहे। कष्ट सहनेका कुछ आभास ट्रान्सवालके सत्याग्रहियोंको अपनी महान् लड़ाईमें मिला है। किन्तु वह तो केवल सिन्धुमें बिन्दुके समान था। जब हम वैसा कष्ट और उससे भी करोड़ों गुना अधिक कष्ट सहने के लिए तैयार हो जायेंगे, तभी हमें सच्ची स्वतन्त्रता मिल सकेगी। ब्रिटिश संविधानमें उसको प्राप्त करनेकी छूट है। ब्रिटिश सिद्धान्त है कि ब्रिटिश बादशाहको ऐसी इच्छा करनी चाहिए कि सबको सच्ची स्वतन्त्रता मिले। और इस सिद्धान्तके अनुसार व्यवहार करनेका -- भले-बुरे तरीकेसे, किन्तु शुद्ध हृदयसे--प्रयत्न करनेवाले अंग्रेज मौजूद है। इसलिए कष्टके होते हुए भी हम ब्रिटिश बादशाहके प्रति राजभक्त रह सकते है और हमारा रहना उचित है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,२४-६-१९११

९४. एक सत्याग्रहीका सम्मान[१]

जब श्री हरिलाल गांधी भारत जाते हुए जंजीबारसे गुजरे तो वहाँ लोगोंने उन्हें पहचान लिया और फिर जंजीबारके भारतीयोंने उनका स्वागत किया। श्री हरिलालने आनाकानी की, परन्तु उनकी एक न चली। उनको श्री वली मुहम्मद नाजर अलीके मकानपर ले जाया गया और वहाँ उनकी बड़ी आवभगत की गई। सम्मानमें जो कुछ कहा गया, उसके उत्तरमें श्री हरिलाल गांधीने कहा कि ट्रान्सवाल संघर्षने दिखा दिया है कि सत्याग्रह कैसा अचूक उपाय है। यदि अब फिर दगा दिया गया तो सत्याग्रही, चाहे वे संसारके किसी भी भागमें क्यों न हों, लौट पड़ेंगे और संघर्षमें शरीक हो जायेंगे, इत्यादि।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-६-१९११

  1. यह लेख स्पष्ट ही हरिलाल गांधी द्वारा गांधीजीको लिखे पत्रमें वर्णित घटनाओंपर आधारित है; देखिए “पत्र : हरिलाल गांधीको", पृष्ठ ११३-१४ ।