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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


मिले हैं; लॉर्ड लैंमिंग्टनसे[१] बातचीत हो चुकी है और अन्य सज्जनों तथा महिलाओंसे भी मिल चुके हैं।

“लीग ऑफ ऑनर" में जितने भी व्याख्यान हुए उनमें श्री पोलकका व्याख्यान सबसे अच्छा माना गया। अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा आयोजित दो सभाओंमें भी वे उपस्थित थे और उनमें उनका भाषण भी हुआ था।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,१-७-१९११

९७. प्राणजीवन मेहताको लिखे पत्रका अंश[२]

[जुलाई १, १९११ के बाद][३]

...यदि आपका यह ख्याल हो कि मेरे देशमें पहुँचते ही, हमें अपने मनके युवक मिल जायेंगे, तो मुझे लगता है यह भ्रमपूर्ण है। मैं तो ऐसा समझता हूँ कि जैसी कठिनाइयाँ यहाँ हैं, वैसी ही वहाँ भी हैं। यहाँ हमने जो कार्य आरम्भ किया है, उसे व्यवस्थित करने के बाद ही देशमें जाना ठीक मालूम पड़ता है। फीनिक्समें अभीतक चैनसे बैठनेका मुझे अवकाश ही नहीं मिला। ऐसा लगता है कि मैं वकालतके जंजालसे मुक्त रह कर अभी एकाध वर्ष शिक्षाके कार्यमें ही लगा रह सकूँ तो ठीक होगा। यहाँ मैं अब कोई नई जिम्मेदारी नहीं ले रहा हूँ। जो हैं, उन्हींको सुव्यवस्थित करनेकी कोशिश कर रहा हूँ।

आजकल यहाँ ऐसी योजना बनाई जा रही है जिससे लोगोंको आधा दिन प्रेसके काममें और आधा दिन खेती आदिके काममें लगाया जा सके। इसमें अधिक संख्यामें योग्य व्यक्तियोंको रखनेका विचार है। लोगोंको प्रेसके कामसे छुट्टी देनेका

यही तरीका है। खेतोंके काममें जुटनेसे जमीन तो सुधरेगी; किन्तु उससे आमदनी तुरन्त होने लगेगी, सो नहीं है। उस सूरतमें मासिक खर्चका निकल सकना मुझे

 
  1. ये किसी समय बम्बईके गवर्नर थे। इन्हें भारतीय पक्षसे बड़ी सहानुभूति थी । आप १९०९में द० आ० वि० भा० समितिके सदस्य बन गये। उसी वर्षे नवम्बर महीनेमें उन्होंने लडे सभामें रमजानके दिनों ट्रान्सवालकी जेलों में बन्द मुस्लिम सत्याग्रहियोंकी कठिनाइयों के सम्बन्धमें एक प्रश्न भी पूछा था। (इंडियन ओपिनियन, २७-२-१९०९ और इंडिया, १९-११-१९०९)
  2. पत्रके पहले दो पृष्ठ नहीं मिले है, किन्तु इसमें कही गई बातोंप्ते स्पष्ट है कि पत्र डॉ. प्राणजीवन मेहताको लिखा गया था। इसका समर्थन इस वातसे और भी अधिक होता है कि सत्याग्रहियोंकी जिस शिक्षा-योजनाकी आर्थिक जिम्मेदारी उठाना डॉ० प्राणजीवन मेहताने स्वीकार किया था उसका जिक्र इस प्राप्त पृष्ठके पहले ही वाक्यमें किया गया है। देखिए “पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको", पृष्ठ ६५ ।
  3. इस पत्रमें छगनलाल गांधीके भारतसे रवाना होनेका उल्लेख है । वे १९११के जुलाई महीनेके पहले हफतेमें भारतसे रवाना हुए थे और २० जुलाईको दक्षिण आफ्रिका पहुंचे थे।