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भारतीय पत्नियाँ


दिये जानेकी धमकीकी तलवार यहाँके भारतीय निवासियोंके सिरपर कई बरसोंसे लटक रही है। यदि स्कूलके बच्चोंकी नज़र उस बस्तीके पाखानोंपर पड़ती है तो इसके लिए हमें दुःख है। यहाँके निवासियोंको पट्टेका स्थायित्व' दीजिए तो हम वचन देते हैं कि वे एक महीनके अन्दर सारे वांछित सुधार कर देंगे। हम जानते हैं कि हमारे इन सताये हुए देशवासियोंने अनगिनत बार प्रार्थना की है कि उन्हें ऐसी स्थिति प्रदान की जाये कि वे अपने बाड़ोंपर पक्की और आधुनिकतम इमारतें बनवा सकें। परन्तु इस दिशामें उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया। यही नहीं, बल्कि जब-कभी उन्होंने कोई प्रयत्न किया तो उनके रास्तेमें रोड़े अटकाये गये। जिस परिस्थितिके लिए दोष देनेवाले खुद, पूरी तरहसे नहीं तो अधिकांशमें, जिम्मेदार है उसके लिए उन्हें एशियाइयोंको दोषी बताना - और कुछ नहीं तो बेईमानी अवश्य है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन,८-७-१९११

१००. भारतीय पत्नियाँ

ट्रान्सवालके एक पंजीकृत भारतीयकी पत्नी होने के नाते किसी भारतीय स्त्री ने ट्रान्सवालमें प्रवेशकी इजाजत मांगी थी।[१] इसपर न्यायाधीश वेसेल्सने जो निर्णय दिया है, उसके कारण समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित हो गया है। यह वही महिला हैं जिन्हें कुछ समय पहले डर्बन के प्रवासी अधिकारीने लौटा दिया था और जिनके मामलेका जिक्र हम पहले कर चुके हैं। न्यायाधीशके शब्दोंसे प्रकट होता है कि बाई रसूल (आवेदनकर्तीका नाम यही है) के अपना दावा सिद्ध करनेके यत्नमें अनुचित बाधाएँ डाली गई। न्यायाधीश कहा कि यदि अदालतको अधिकार होता तो वे आवेदनकर्तीको अस्थायी अनुमति दे देते, ताकि उन्हें अपने विवाहके बारेमें आवश्यक सबूत प्रस्तुत करने में सहूलियत हो। यदि प्रवासी अधिकारी ऐसा अनुमतिपत्र दे देता तो यह मामला अदालतमें पहुँचता ही नहीं। हम अब भी आशा करते हैं कि बाई रसूलको अपना दावा सिद्ध करनेके लिए हर तरहकी सहूलियत दी जायेगी। क्योंकि, यहाँ तो निश्चय ही व्यापारमें भारतीय होड़का कोई प्रश्न नहीं है।

परन्तु अधिक महत्वकी बात तो न्यायाधीशकी यह प्रासंगिक उक्ति है कि किसी भारतीयको एकसे अधिक पत्नियाँ यहाँ नहीं लानी चाहिए। जिनकी एकसे अधिक

 
  1. ट्रान्सवालके एक पुराने पंजीकृत निवासी श्री आदमजी भारतसे अपनी पत्नी बाई रसूलको ले आये थे। डर्वनमें प्रवासी अधिकारीने बाई रसूलको जहाजले उतरनेसे रोक दिया, यद्यपि प्रचलित रीति यह थी कि ऐसे प्रवासियोंको १० पौंडकी जमानत लेकर उतरने दिया जाता था। तब उन्होंने डेलागोआबेके रास्ते ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेकी कोशिश की, और अन्तमें उनका मामला ट्रान्सवाल सर्वोच्च न्यायालयमें पेश हुआ। सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयके विवरणके लिए देखिए अगला शीर्षक।