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जोहानिसवर्गकी चिट्ठी

निर्वासनका आदेश रद हुआ

एन० दला नामक एक भारतीय युवक हैं। वे बारबर्टनमें गिरफ्तार हुए थे; और वहाँ उन्हें निर्वासनका हक्म हआ था। उन्हें यह हक्म मख्यत: इसलिए दिया गया था कि उनकी उम्र १८ वर्षकी मानी गई थी। इस युवक के मित्रोंने श्री रिचकी [कानूनी] सलाह ली और उन्हें सूचित किया कि वास्तव में दलाकी उम्र १६ वर्षसे अधिक नहीं है। तदनुसार निर्वासनके हक्मको रद करानके अभिप्रायसे मामला सर्वोच्च न्यायालयम लाया गया। उस न्यायालयम एक डॉक्टरने यह गवाही दी कि दलाकी अवस्था सोलह वर्षके आसपास होगी। इस गवाहीको ठीक मानते हुए न्यायालयने निसिनके आदेशको रद कर दिया है। इसमें तर्क यही था कि १६ वर्षसे नीची उम्रवाले युवकोंको निर्वासित करनेकी व्यवस्था कानूनमें नहीं है। परन्तु इस फैसलेकी बिनापर दलाको ट्रान्सवालमें रहनेका हक हासिल न हुआ। हक हासिल करनेके लिए उसे प्रार्थनापत्र देना होगा और कानूनके अनुसार यदि वह पंजीयनका अधिकारी माना जायेगा तो ही उसे पंजीयन प्रमाणपत्र मिलेगा। इस फैसलेमें बस इतना ही जानने योग्य है कि इससे दलाको निजी लाभ पहुंचा है।

रसूलबाईका मुकदमा[१]

परन्तु सर्वोच्च न्यायालयने बाई रसूलके मुकदमेके सम्बन्धमें गत सप्ताह जो निर्णय दिया है, वह महत्वपूर्ण है। बाई रसूल श्री आदमजीकी पत्नी है। इनके बारेमें बहुत-कुछ जानकारी 'इंडियन ओपिनियन के पिछले अंकोंमें दी जा चुकी है। वे नेटालमें जहाजसे न उतर सकीं, इसलिए अपने पतिके साथ डेलागोआ-बे चली गई। वहाँसे उन्होंने ट्रान्सवालमें प्रविष्ट होनेका यत्न किया। उसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालयमें पहुँचा। माँग यह की गई थी कि प्रवासी अधिकारी श्री चैमने बाई रसूलको ट्रान्सवालमें प्रविष्ट होनेसे न रोकें। मामला कुछ उलझा हुआ-सा था। जिस समय श्री आदमजीने पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त किया था, उस समय बाई रसूलके साथ उनका विवाह हो चुका था, परन्तु फिर भी अपनी धर्म-पत्नीके रूपमें उन्होंने उस स्त्रीका नाम दिया था जिसे वे तलाक दे चुके थे। इसलिए श्री आदमजीके लिए यह साबित करना कठिन हो गया कि बाई रसूल उनकी मौजदा पत्नी है। न्यायालयने अपना निर्णय देते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति रखैल स्त्रीको ट्रान्सवालमें नहीं ला सकता। पहली स्त्रीको तलाक दे दिया जा चुका था, यह बात सन्तोषप्रद रीतिसे प्रमाणित नहीं की जा सकी और न यही कि बाई रसुलके साथ उनका निकाह हुआ था। इस कारण न्यायालयने प्रार्थना नामंजूर कर दी और मुकदमेको खर्चके साथ खारिज कर दिया। न्यायालयने अपने फैसले में कहा कि यदि उसे अधिकार होता तो वह बाई रसुलको अपना प्रवेशाधिकार प्रमाणित करने के लिए अस्थायी प्रमाणपत्र दे देता। परन्तु उसके हाथमें वह अधिकार नहीं है।

यदि न्यायालय इतना ही कहकर सन्तोष कर लेता तो कोई बड़ी कठिनाई दरपेश न होती। परन्तु उसने अपने फैसले में यह भी कहा कि किसी व्यक्तिकी अगर

 
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