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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


उसका पालन निरन्तर मृत्युपर्यंत करना चाहिए; दृढ़ रहना चाहिए। यदि यह बात ठीक है तो हमें ईश्वरकी मददके अलावा और किसीकी मददकी जरूरत नहीं है। फिर हम आगकी लपटोंसे घिरे रहकर भी कर्त्तव्यका पालन कर सकते हैं । कोई तलवारकी धारपर खडा कर दे तो वहाँ भी रह सकते है। ऐसा करने में अधिकसे-अधिक यही हो हो सकता है कि हमारी देह चली जाये। इसमें डरनेकी क्या बात है? डरनेसे देह रहनेवाली नहीं है: जानेकी घड़ी आ जायेगी तब वह जायेगी ही।

यदि हम इस प्रकार अपने कर्त्तव्यका पालन करते जायें, और विचार करनेसे मालूम होता है कि ऐसा करना कठिन नहीं है-- तो दूसरी बातें अपने-आप सूझ जायेंगी। घने जंगलमें रातके समय भटकनेवाले मनुष्यके लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज दीपक है। वह फिर निर्भय होकर रास्ता मिलने तक बाट देखता रह सकता है। रास्ता मिलते ही वह उस रास्ते चलना शुरू कर देगा। अगर रास्तेमें उसे संस्थाओं-रूपी कोई पुल मिल जायें, तो वह नदी-नालोंको पार कर लेगा। यदि ये पुल मरम्मततलब हो गये हैं, तो वह दीपककी मददसे उस पुलकी दरार आदिको देखकर लोगोंको बतायेगा। कर्तव्य-रूपी यह दीपक प्रत्येक व्यक्तिको सुलभ है। और यह तो एक बच्चा भी स्वीकार करेगा कि दीपक मिलनेपर रास्ता मिल ही जाता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-७-१९११

१०५. पत्र: मगनलाल गांधीको

सोमवारकी रात, [जुलाई १७, १९११][१]

चि० मगनलाल,

ट्रस्ट आदिके विषयमें लिखा तुम्हारा पत्र मेरे हाथमें आज ही आया है। अब इसके बाद तुम फार्मके पतेपर पत्र लिखोगे, तो ठीक रहेगा। मेरा विचार जोहानिसबर्ग [सप्ताहमें] केवल एक दिन अर्थात् सोमवारको ही जानेका है।

लाइब्रेरीकी व्यवस्था ठीक है। फिलहाल किताबें न मँगाकर पैसा जमा करते जाना ही ठीक है।

 
  1. जुलाई १५, १९११ को प्रकाशित एक विज्ञापनके अनुसार सोमाली नामक जहाज, जिससे छगनलाल गांधी आनेवाले थे, १५ जुलाईको डर्बन पहुँचनेवाला था। उसी सप्ताहके गुजराती इंडियन ओपिनियन में छपा कि सोमाली जहाज १५ की जगह १८ जुलाईको डर्बन पहुँचगा। वस्तुत: वह २० जुलाईको पहुँचा (इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९११)। गांधीजी द्वारा मगनलालको लिखे गये १२ जुलाईके पत्रसे पता चलता है कि वे छगनलालके डर्वन पहुँचनेपर पहुँचका तार पानेकी आशा करते है। इससे पता चलता है कि यह पत्र १२ जुलाईके बाद पड़नेवाले सोमवारको लिखा गया होगा, और उस सोमवारको जुलाईकी १७ तारीख थी। उस समय तक सोमालीके १८ जलाईको डर्बन पहुँचनेकी आशा थी । इसीलिए पत्रके अन्तमें लिखा गया है कि "छानलाल, . . इस पत्रके पहुँचते-पहुँचते आ भी गये होंगे।