मुझे भी ऐसा लगता है कि अब स्टोरसे होनेवाले नफेको अलग गिननेकी जरूरत नहीं है। इसका फैसला यदि अभी न हो सका, तो हम उसे, मैं जब वहाँ आऊंगा, तब कर डालेंगे। तुम इसे याद रखना।
अब अपने पत्रके मुख्य भागके विषयमें। यदि तुम थोड़ासा विचार करो, तो यह देख सकोगे कि कौम किसे निकाले, यह सवाल उठता ही नहीं। जिस समय फीनिक्सकी हालत नितान्त कमजोर हो जायेगी, उस समय निकालने या रखनेकी बात उठेगी ही नहीं। तब तो जिसपर सच्चा रंग चढ़ा होगा वही वहाँ रहेगा। उस समय सवाल तो यह उठेगा कि वहाँ कौन रहे। आज हम वेतन नहीं देते, लेकिन लोगोंका भरण-पोषण करते हैं। असली सवाल तो यह है कि उसमें भी कमी करके, कष्ट सहकर, रूखा-सूखा खाकर कौन रह सकता है--कोन रहेगा? मतलब यह कि यह सवाल उठता ही नहीं। सच्ची माँ कौन है और बनावटी माँ कौन, इसकी परीक्षा उस समय हो जायगी। इसलिए तुम्हारे मनमें जो शंका उठी है, वह निरर्थक है।
तुम्हारी सन्तान सम्बन्धी शंका भी ऐसी ही है। भारत धर्म-क्षेत्र है, यह बात सही है। किन्तु वहाँ पाप-क्षेत्र भी है। इस प्रकार दूसरे स्थानोंमें पाप-क्षेत्र होते हुए भी कहींकहीं धर्म-क्षेत्र रूपी हरियाली भी देखने में आती है। किन्तु हम तो अपना मुख भारतकी ओर रखकर अपना काम कर रहे है। इसलिए सन्तानसे सम्बन्धित सवाल कहाँ रहा? फीनिक्सका विवान ऐसा होगा और है कि वे सब लड़के जिनकी भारत जानेकी इच्छा होगी, वहाँ हो ही आयेंगे। फीनिक्स केवल फीनिक्समें ही रहेगा, ऐसी बात नहीं है। जहाँ भी फीनिक्सका उद्देश्य पूरा हो रहा हो, वहाँ फीनिक्स है। क्या तुम यह भूल जाओगे कि हम जो भी तैयारी कर रहे हैं, वह सब भारतके लिए ही है ? किन्तु यदि भारतके लिए तुम्हारी और तुम्हारी संतानकी देह फीनिक्समें ही काम आये, तो इसमें क्या बुराई है? यदि भारतका-सा आचरण हम फीनिक्समें ही करते हों, तो फिर भारत और फीनिक्समें अन्तर इतना ही रहा कि भारतमें इस समय जो अनाचार दिखाई पड़ता है उसे छोड़कर हमने फीनिक्समें केवल सदाचार ही ग्रहण किया है। इसमें दुःखको क्या बात है? तम्हारे लिखनेपर में इस सम्बंधमें और अधिक लिखगा।
यदि तुम मेरी आत्माको समर्थ मानते हो तो तुम्हारी आत्मा भी वैसी ही है। मेरी आत्मा और तुम्हारी आत्मामें कोई भेद नहीं है। किंतु तुम्हारे भीतर अनात्माका जो अंश है यानी भीरुता, संशय, अनिश्चय इत्यादि, उसे तुम दूर कर दो, तो हम दोनों समान ही है। अंतर इतना ही है कि दीर्घ प्रयत्नके बाद मैंने अपना अधिकांश मल धो डाला है। यदि तुम दृढ़तापूर्वक प्रयत्न करोगे, तो तुम भी उतना ही, बल्कि उससे ज्यादा धो सकोगे।
छगनलाल, आनन्दलाल,[१] जमनादास[२] इत्यादि शायद इस पत्रके वहाँ पहँचते-पहँचते आ भी गये होंगे। सब आ रहे हैं, इसलिए मुझे तो बड़ी खुशी हो रही है। तुम