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१०७. मणिलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश

[जुलाई २५, १९११ के आसपास]'

... इस समय तो मैं पाठशालामें फंसा हुआ हूँ। पाठशाला १ से ४।। बजे तक बराबर चलती रहती है। सोमवारको जोहानिसबर्ग जाता है इसलिए केवल उस दिन छुट्टी दे देता हूँ। पाठशाला रविवारको भी चलती है। सुबहके तीन घंटे भी पाठशालामें ही जाते है। किन्तु उस समय केवल मजदूरीका-- खेतीका और घरका काम होता है। मैं देखता हूँ कि इससे लड़कोंका शरीर और मन दिन-प्रतिदिन सुधर रहा है।

जबतक तुम्हारे मनमें भरपूर उत्साह उत्पन्न नहीं होता, तबतक विद्याभ्यास सम्भव नहीं है। ऐसा न समझना कि यहाँ नहीं हो पाता, तो विलायतमें हो जायेगा। जमनादास तो तुम्हारा सहपाठी रहा है, ऐसा मुझे याद आता है। यदि ऐसा हो, तो मैं मानता हूँ कि तुम्हारी और उसकी आपसमें खूब पटेगी। उसकी फिक्र रखना और देखना कि वहाँ उसका जी लगता रहे।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू०१०२) से।

सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी।

१०८. मानपत्र : एच० कैलेनबैकको'

जोहानिसबर्ग
जुलाई ३१, १९११

हरमान कैलेनबैक महोदयको सेवामें

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको अपना भ्रातृत्वपूर्ण हादिक सहयोग देकर आपने उनका जो स्नेह और आदर अजित किया है, यह मानपत्र उसीका एक तुच्छ प्रतीक है। ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष और अवैतनिक मन्त्रीकी हैसियतसे हम इस संस्थाकी ओरसे आपसे इसे स्वीकार करनेका अनुरोध करते है।

१. हरिलाल गांधीको लिखे २५ जुलाईके पत्रके अनुच्छेद ४ और इस पत्रके अनुच्छेद १ से जान पड़ता है कि ये दोनों पत्र एक ही समय लिखे गये होंगे। यह तो निश्चित ही है कि पत्र जुलाई २०, १९११ के बाद लिखा गया है-जमनादास अपने भाई छगनलाल गांधीके साथ उसी दिन नेटाल पहुंचे थे।

२. पत्रके प्रथम कुछ पन्ने उपलब्ध नहीं है।

३. यह मानपत्र कैलनबैकको ३१ जुलाई, १९११ को उनके यूरोप जाते समय विदाईके अवसरपर दिया गया था। देखिए "कैलनबेकका स्वागत", पृष्ठ १२९-३१ ।