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श्री कैलेनबैकका स्वागत


उसका अनुवाद करो। मुझे अनुवाद करनेका समय नहीं है। इस पुस्तकको मैं अभीअभी फिर पढ़ गया। पुस्तक अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

मोहनदासके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्रकी श्री छगनलाल गांधी द्वारा तैयार की गई प्रतिलिपि (सी० डब्ल्यू० ५०९२) से।।

सौजन्य : छगनलाल गांधी

११०. श्री कैलेनबैकका स्वागत

श्री कैलेनबैकका इरादा था कि वे जोहानिसबर्गसे चुपचाप खिसक जायें और भारतीय समाज सम्मानमें कोई प्रदर्शन न कर पाये। परन्तु ईश्वरकी इच्छा कुछ और थी। ज्योंही लोगोंको ज्ञात हुआ कि श्री कैलेनबैक यरोप जानेवाले हैं, प्रमख सत्याग्रही आपसमें मशविरा करने लगे कि “कुछ-न-कुछ किया जाना चाहिए।" उन्हें लगा कि टॉल्स्टॉय फार्मके मालिकको--जिन्होंने अपने अप्रतिम ढंगसे हमारे लिए इतना अधिक किया है--समाज द्वारा बगैर सम्मानित किये नहीं जाने देना चाहिए। संयोगसे लोगोंको खबर लग गई कि कैलेनबैक किस दिन जा रहे है। समय बहुत कम रह गया था, फिर भी चन्दा तुरन्त एकत्र हो गया। यह निश्चित हुआ कि उन्हें एक कलापूर्ण मानपत्र ठोस रजत-मंजूषामें रखकर भेंट किया जाये। यह विचार बहुत असंगत था; क्योंकि श्री कैलेनबैकने शान-शौकतसे रहना लगभग छोड़ रखा था और टॉल्स्टॉय फार्मपर वे सादा जीवन बिताने लगे थे। यहां उन्होंने अपनी चर्या पूरी तरह गरीब सत्याग्रहियोंके समान बना ली थी। अक्सर वे उन्हींके साथ खाते-पीते थे। बरामदेका फर्श ही उनकी कुर्सी और गोद ही भोजनकी मेज थी। ऐसे व्यक्तिको ठोस रजत-मंजूषा भेंट की जानेवाली थी। वे उसे रखेंगे कहाँ? पर उत्साही प्रशंसकोंको इससे क्या सरोकार? सजाया गया और मंजषा फरमाइश भेजकर तैयार करवा ली गई। श्री कैलेनबैकको तो बिल्कुल आखिरी मिनटपर बताया गया कि उन्हें एक मानपत्र भेंट किया जानेवाला है। वे हंसे और बोले, “मैने आपके लिए किया ही क्या है? आपपर मेरा कोई ऋण नहीं है; और यदि हो भी तो अभी उसकी वसूलीका मौका नहीं आया है।" यह बात शनिवारकी है, जब वे टॉल्स्टॉय फार्म जा रहे थे। सोमवारको उन्हें यूरोपके लिए रवाना होना था। परन्तु धुनके पक्के लोग, जो धरनेदारीका कर्तव्य निभा चुके थे, "ना" सुननेवाले नहीं थे। श्री कैलेनबैकने कहा "मैं कोई सार्वजनिक सम्मान स्वीकार नहीं कर सकता।" इसपर मुलाकातियोंने कहा-- “करना ही पड़ेगा।" फिर वे चले गये। श्री कैलेनबैकने समझा कि बात टल गई। परन्तु सोमवार की सुबह श्री कैलेनबैक जब लॉलीसे जा रहे थे, श्री थम्बी नायडूके नेतत्वमें धरनेदारोंका एक जोशीला दस्ता रास्ते में

१. जुलाई ३१, १९११ ।

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