पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


है। यदि इसका प्रतिकार समय रहते समुचित रीतिसे नहीं किया जाता तो कहना कठिन है कि यहाँ कितनों के प्राणोंपर आ बनेगी। इसलिए यह सर्वथा उचित है कि इस रोगका उन्मूलन करनेके लिए डॉ० जेम्सन और उनकी समिति सभी समुदायोंसे सहयोग माँगें और वह उन्हें दिया जाये। डॉ० जेम्सनकी इच्छाके अनुसार भारतीयोंकी भी एक समिति बनाई जा चुकी है। यह उक्त समितिको हमारे समाजकी सेवा करनेकी दिशामें आवश्यक सहायता देती रहेगी। परन्तु केवल समिति बन जाना ही काफी नहीं है। हमें इसमें कोई शक नहीं है कि डॉ० म्यूरिसनके पास ऐसे भारतीय स्वयंसेवकोंका तांता लग जायेगा जो उनके निर्देशानुसार निरीक्षण तथा लोगोंसे मिलने-जुलनेके लिए अपनेआपको उनके सुपुर्द कर देंगे। यदि उन्होंने ऐसा किया तो वे सही अर्थों में करुणाके देवदूत बन जायेंगे। हमारी यह निश्चित राय है कि डॉ० म्यूरिसन जिस तरहके कामको अपेक्षा रखते है-- और उनका वैसी अपेक्षा रखना ठीक ही है--वह वैतनिक कार्यकर्ताओंसे नहीं, स्वयंसेवकोंसे ही हो सकेगा। रोगियोंको हमारे नेताओंके सिवा और कौन समझा सकता है? डॉ० एडेम्स कहते हैं कि इस रोगकी चिकित्सामें शुद्ध और खुली हवा ही महत्वकी वस्तु है, वही उसका पहला और अन्तिम उपाय है। यह उपचार अत्यन्त सीधा-सादा है, किन्तु यदि लोग इसे समझ नहीं पायें तो इसे अपनाना उतना ही कठिन भी है। इसलिए लोग तभी इसे अपनायेंगे जब वे लोग जिनपर जनताकी श्रद्धा है अपनी सारी योग्यता और समझानेकी शक्ति लगाकर यह बात उनके गले उतारेंगे। बन्द कमरोंकी हवा गर्म परन्तु दूषित और कार्बनसे भरी हुई होती है। इसके विपरीत बाहर खेतोंकी हवा ठण्डी किन्तु ताजी होती है। परन्तु जिन लोगोंको खुली हवामें सांस लेनेसे जुकाम हो जानेका डर है, उन्हें यह समझा पाना कठिन है कि जिस प्रकार दूसरोके द्वारा उगले हुए विषाक्त जलके बजाय स्वच्छ और स्वास्थ्यप्रद पानी पीना लाभदायक है, उसी प्रकार उनका कल्याण -- अर्थात् क्षय रोगसे मुक्ति -- शुद्ध और शक्तिदायिनी ताजी हवाके सेवनमें निहित है। हमें यकीन है कि क्षयके विरुद्ध घोषित डर्बन नगरपालिकाके इस संगरमें प्रत्येक प्रभावशाली भारतीय अपना नाम स्वयंसेवकके रूपमें दर्ज करा देगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन,५-८-१९११