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११९. एक महत्वपूर्ण निर्णय


श्री रिच और ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघ दोनों ही अपने उन निर्णयोंके लिए बधाईके पात्र हैं जो संघकी बैठकके अन्यत्र प्रकाशित विवरणमें दिये गये है। श्री रिचने अबतक निःस्वार्थ भावसे समाजकी जो अनेक सेवाएँ की है, उनके इस उदार कार्यने उन सबपर कलश चढ़ा दिया है। उनके कार्यने ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी जिम्मेदारीको दस गुना बढ़ा दिया है। श्री रिचको जेल जाने देकर यदि हम निपट कायरताके मारे जलयात्राको टालनेका यत्न करें तो हम हर विचारवान मनुष्य द्वारा धिक्कारे जानेके योग्य ही कहलायेंगे। इसलिए संघने यह बहुत उचित किया कि उसने एक दूसरा प्रस्ताव भी पास किया और समाजकी ओरसे दृढ़ निश्चय प्रकट किया कि भले ही लोगोंको जेल जाना पड़े या उससे भी अधिक बड़ा कोई कष्ट, जो उनके भाग्य में बदा हो, झेलना पड़े किन्तु खतरेमें पड़े हुए हितोंकी रक्षा अवश्य की जायेगी। तीसरा प्रस्ताव श्री काछलियाको अधिकार देता है कि वे उपर्युक्त अत्यन्त महत्वपूर्ण दोनों प्रस्तावोंकी तरफ सरकारका ध्यान दिलायें। इसमें श्री काछलियाने जरा भी विलम्ब नहीं किया है। अब हम सरकारके निर्णयकी प्रतीक्षा करनी है। हमें आशा है कि संघके मन्त्रिमण्डलके सदस्योंमें सुबुद्धि उत्पन्न होगी और जो चीज एक राष्ट्रीय संकटका रूप धारण कर सकती है उसे वे टाल देंगे। भारतीयोंसे यह आशा न की जाय कि वे अपने हितोंके साथ खिलवाड़ होने देंगे। अब यदि सरकारकी तरफसे ऐसी कोई ज्यादती की गई, तो संसार फिरसे वैसी अरुचिकर घटनाओंका साक्षी बनेगा जब एक शक्तिशाली सरकारने अपनी सारी शक्ति, अपनी बातपर अड़े हुए किन्तु कानूनके पाबन्द, मुट्ठी भर लोगोंको कुचलने के लिए लगा दी थी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-८-१९११

१२०. शिक्षाका कलंक

पहले डर्बनमें भारतीय कन्याएँ साधारण सरकारी कन्या-शालाओंमें पढ़ती थी। कुछ वर्ष हुए, भारतीय लड़कियोंको इन शालाओंमें जानेसे रोक दिया गया और उनकी पढ़ाईकी व्यवस्था उच्चस्तरीय भारतीय शाला (हायर ग्रेड इंडियन स्कूल) में कर दी गई। वादा यह किया गया था कि लड़कियाँ लड़कोंसे अलग शिक्षा प्राप्त करेंगी। इस वचनके बावजूद सरकारने लड़कियोंको लड़कोंके साथ एक ही शालामें पढ़ानेका प्रयोग करके देखा और वह उसमें असफल रही। सिद्धान्तत: तो हम लड़कों और लड़कियोंके सह-शिक्षणके पक्षमें है। परन्तु जिन आदतों या पूर्वग्रहोंकी जड़ें गहरी

१. देखिए पिछला शीर्षक ।