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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यूरोप छोड़ चुके है तो यह आपको उतने ही समयमें मिल जायगा, लगभग जितने समयमें यहाँसे सीधा भारत भेजनेपर मिलता।।

हरिलालका पत्र मुझे अभी नहीं मिला। परन्तु [अहमदाबादसे] समाचार मिला है कि [चि०] हरिलाल वहाँ पहुँच गया है [और] स्कूलमें भर्ती [भी] हो चुका है। उसने मुझे [लिखा है कि उसका विचार मैट्रिककी परीक्षा पास ही कर लेना [है और] जबतक वह इसे पास नहीं कर लेता, उसका मोह नहीं टूटेगा और उसे अपनी लियाकतका विश्वास भी नहीं होगा। जो ऐसे विचारसे प्रेरित हो कर गया है, उसे मैं मना नहीं करना चाहता। यदि वह अपने चरित्रपर दृढ़ रहा तो अहमदाबादमें उसे बहुत अनुभव प्राप्त होगा। यह अनुभव कौन-सा हो और उसे किस प्रकार प्राप्त करना चाहिए, इस सम्बन्धमें हम बहुत बातें कर चुके हैं। हमें तो अब उसकी स्थिति दूर बैठे देखते रहना है। आप उसके साथ पत्र-व्यवहार बनाये रखेंगे, ऐसी उम्मीद है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५५६७) से।

सौजन्य : श्री सी० के० भट्ट ।

१२३. पत्र: एशियाई पंजीयकको'

अगस्त २१, १९११

एशियाई पंजीयक,
प्रिटोरिया
महोदय,

मैं समझौतेके अन्तर्गत आनेवाले भारतीयोंकी एक संशोधित सूची' संलग्न कर रहा हूँ। चूंकि संघको अभीतक भारतमें मौजूद ऐसे सभी व्यक्तियोंके नाम नहीं मिल पाये है, इसलिए मैं उनकी पूरी सूची भेजने में असमर्थ हूं।

मैं आपको जो सूची भेज रहा हूँ, उसमें वे सभी नाम नहीं हैं जो सम्मिलित किये जा सकते थे। मैं ऐसे कुछ लोगोंके साथ लिखा-पढ़ी कर रहा हूँ जो समझौतेके

१. यह गांधीजीके कागजातमें मिला है और यह मसविदा शायद उन्होंने ही तैयार किया था । चेंकि अन्तिम अनुच्छेदमें किया हुआ अनुरोध मान लिया गया था, इसलिए अनुमान लगाया जा सकता है कि छटे हुए स्थानों में संख्याएँ भरने के बाद इसे भेज दिया गया होगा; यद्यपि, जैसा ऐसे पत्रों के सम्बन्धमें किया जाता था, उसके विपरीत इसे इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित नहीं किया गया। देखिए “पत्र: एशियाई पंजीयकको", पृष्ठ ८७-८८ ।

२. यह उपलब्ध नहीं है। ३. देखिए “पत्र : ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ५८-५९ ।