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१२४. पत्र: छगनलाल और मगनलाल गांधीको

श्रावण बदी १४, [अगस्त २३, १९११ ]
रातके ११ बजे

चि० छगनलाल और चि० मगनलाल,


मुझे तुम दोनोंके पत्र मिल गये। तुम प्रति माह नौ पौंड ले लिया करो।

तुम लोगोंको जो लिखना चाहिए उसे लिख डालने में मैं संकोच नहीं करूँगा। जमीनपर जो रुपया खर्च किया गया है-- चाहे वह मकानके लिए हो या दूसरे मदमें -- उसे लौटानेका इरादा नहीं होता। हाँ, जमीनकी कीमत दी गई हो तो वह लौटाई जानी चाहिए, ऐसा लगता है। वह भी यदि हम नया रिवाज दाखिल करें तो।

मुझे यदि फिर कानून-सम्बन्धी मगजपच्ची करनी पड़ी तो वह तुम्हारी खातिर नहीं होगी। सम्भव है, कभी ऐसे दूसरे निमित्त भी आ खड़े हों। यह तो अन्तिम उपाय है। मुझे उसका उल्लेख करना पड़ रहा है, यह भी मेरी अश्रद्धा, मोह और कमजोरीको ही व्यक्त करता है। मेरे उपयुक्त विचारोंमें कुछ-कुछ वैसा ही आभास टपकता है जैसे कोई झूठा सत्याग्रही अपना अन्तिम विश्वास शरीर-बल फिर भी इन दोनों बातोंमें भेद है, यह मैं जानता हूँ। तो भी मुझे वकालत पुनः न करनी पड़े, इसीमें मेरा हित है, मैं प्राय: ऐसा सोचा करता हूँ। मेरे जीते-जी हम फीनिक्समें सम्पूर्ण गरीबीका जीवन बिता सकें, यही मेरी अभिलाषा है। याचना करता हूँ कि ईश्वर वह दिन दिखाये, पर सारे आसार उलट ही नजर आते है। हम खरी गरीबीको अपना सकें, ऐसा समय आना मश्किल ही है। डॉक्टर मेहताकी मदद इसमें विघ्न-रूप है। मुझे लगता रहता है, जबतक यह हक्मका पत्ता चलता है तबतक हमें यह अलभ्य लाभ नसीब नहीं होना है कि कलके लिए पाई भी नहीं बची और अब कल क्या होगा! मैं इस लाभको अलभ्य मानता हूँ, क्योंकि दुनियाके बड़े भागकी यह स्थिति है; और बुद्ध आदिकी भी यही स्थिति रही है और भविष्यमें भी रहेगी। मुझे इसकी प्रतीति होती ही रहती है कि इस स्थितिके बिना आत्मारामको नहीं जाना जा सकता।

१. गांधीजीने छगनलाल गांधीको लिखे अपने १३-८-१९११ के पत्र (देखिए पृष्ठ १३७) में ऐसा आभास-मात्र दिया था कि फीनिक्समें अपने हिस्सेकी भूमिमें श्री छगनलालने सुधार करानेपर जो व्यय किया था उसके लिए मुआवजा देनेको वे तैयार नहीं थे। किन्तु, इस पत्रमें वे इस सम्बन्ध कृत-निश्चय जान पड़ते हैं । अत: निश्चय ही यह पत्र १३-८-१९११ के बाद लिखा गया होगा । १९११ में श्रावण बदी १४, २३ अगस्तको पड़ी थी।

२.देखिए, “पत्र : छगनलाल गांधीको", पृष्ठ १२७-२८ और पृष्ठ १३६-३७ ।