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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


है। सुबहके समय बालक डिब्बेका दुध, रोटी (बाटी) और घी लेते हैं। दोपहरमें यदि मेवा हो तो केले, फार्मकी खट्टी नारंगियोंका रस और जैतूनका तेल मिले हुए सेवके टुकड़े तथा साथमें रोटी दी जाती है। चांवलकी कनकीको साफ करके रख लिया है। उसकी खीर बनाई जाती है। इस तरह कभी साबूदानेकी और कभी चावलकी खीर बनती है। कभी-कभी केवल भात और घी और पिछले वर्षकी सुखाकर रखी गई खुमानियां हैं, उन्हें बफा कर दूधके साथ लिया जाता है। शामको कॉफी (गहूँकी) अथवा दूध और घी-रोटी। नारंगीका मुरब्बा बना कर रखा है, उसे भी लेते हैं। सप्ताहमें एकबार बालकगण दाल-भात खाते हैं। मेढ और प्रागजी तो एक अरसा हुआ अलोने [भोजन ] पर है। बा तो है ही; यद्यपि पिछले रविवारको बालकोंके लिए सेमकी फली बनाई गई थी उसमें से थोड़ी उसने भी खाई और दो दिन बुरी तरह बीमार रही। सेम नमकके लिए ही खाई थी या और किसी कारणसे, यह तो प्रभु जाने। मैं तो सेम और नमकको ही दोष देता हूँ। जो रतनशीकी पत्नी भी अलोनी बन जाये तो काफिरोंको छोड़कर हम सभी [सप्ताहमें] छ: दिन तो अलोने ही माने जायेंगे। पर मैं देखता हूँ, रम्भावाईके तो नमकमें ही प्राण है।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६५९) से।

सौजन्य : श्रीमती राधाबेन चौधरी ।

१२९. मिस्टनके भारतीय

जमिस्टन एशियाइयोंके विरोधका गढ़ है। उसकी नगर-परिषदने जमिस्टन बस्तीमें रहनेवाले बाड़ेदार भारतीयोंके नाम एक गैर-कानूनी नोटिस जारी किया है। भारतीयोंने उसका विरोध करनेका निश्चय किया है। यह उचित ही है। सन् १८८५ के कानून ३ के अनुसार समस्त एशियाइयोंको वाजारों या बस्तियोंमें रहना चाहिए। यह सच है कि इस कानूनका अमल नहीं हो रहा है। क्योंकि बस्तियोंसे बाहर बसनेपर सजाकी कोई काननी व्यवस्था नहीं है। परन्तु इस निन्दनीय वस्तुस्थितिको सभी जानते हैं कि ट्रान्सवालके ज्यादातर नगरोंमें एशियाइयोंके लिए अलग बस्तियां है और अधिकांश बस्तियोंमें वे लोग रहते भी है। जमिस्टनकी बस्ती इन्हींमें से एक है। ऐसी बस्तियोंमें भारतीयोंको व्यापार करने से रोकनेके लिए कोई कानून नहीं है । फलतः प्रस्तुत बस्ती में कई

१. जमिस्टन-स्थित जॉर्ज टाउन बस्तीके भारतीयोंको अपने-अपने परवाने प्रमाणित करानेका नोटिस दिया गया था, जिसका मतलब यह था कि उन्हें या तो बस्ती में अपना व्यापार बन्द करना पड़ता या बस्ति छोड़कर चले जाना पड़ता। उन्होंने इस नोटिसका विरोध करते हुए टाउन क्लार्कको लिखा कि नगर परिषदको ऐसा नोटिस जारी करनेका कोई अधिकार नहीं है और सन् १८८५के कानून ३के संशोचित रूपके अनुसार उनके पटटेको पूरी सुरक्षा प्राप्त है।