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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अलावा यह पूर्णतया सिद्ध भी नहीं किया जा सका कि इन लड़कोंको नेटालका निवासी होनेका अधिकार ही नहीं है। इसके विपरीत एकके बारेमें तो मजिस्ट्रेटने बहुत सहानुभूति भी प्रकट की। जहाँ प्रत्यक्ष ही वोखा दिया गया हो वहाँ जमानतका जब्त कर लिया जाना तो समझमें आ सकता है, पर इन मामलोंमें तो धोखेका किसीको सन्देह तक न हुआ। अत: इस कार्यका एक ही अर्थ हो सकता है कि जमानतें जब्त करनेकी नीति अख्तियार करके सरकार भारतीय निवासियोंके अधिकारोंको विफल बना देना चाहती है। यदि सरकारकी सोची-समझी नीतिका यही रूप है तो हमारी समझमें जनरल बोथाके इस कथनको मक्कारी ही कहना पड़ेगा कि जो भारतीय कानूनके अनुसार दक्षिण आफ्रिकाके निवासी बन गये हैं, सरकार उनके हितोंको हानि नहीं पहुंचाना चाहती। हम तो यही आशा करते है कि कांग्रेसके आवेदन-पत्रपर जनरल स्मट्स अनुकूल विचार करेंगे और जमानतकी रकमें लौटा देनेका आदेश देंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-९-१९११

१३१. पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको

आश्विन सुदी २ [सितम्बर २४, १९११]

भाई श्री प्राणजीवन,

आपके तीन पत्रोंका जवाब मैने अभीतक नहीं दिया। आप हिन्दुस्तान जानेवाले थे इसलिए विलायतके पतेपर लिखकर क्या करता? हिन्दुस्तान जानेवाली डाकका मामला तो ढीला-ढाला ही रहता है इसलिए वहाँके लिए नियमसे लिखना सम्भव नहीं होता। आज भी डाक कब निकलेगी यह बिना जाने ही पत्र लिख रहा हूँ।

बताया था। किन्तु, उक्त दोनों सज्जनों द्वारा जमानतके तौरपर सौ-सौ पौडकी रकम जमा करनेपर उनके लड़कोंको तबतक के लिए. उतरनेकी अनुमति दे दी गई जबतक कि मुख्य मजिस्ट्रेटकी अदालतमें उनकी अपीलकी सुनवाई नहीं हो जाती । मजिस्ट्रेटने २३ मईको सैयद अहमदके लइकेके सम्बन्धमें निर्णय देते हुए कहा कि उम्रके बारे में किसी भी अधिकारीके निर्णयके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती। दूसरे लड़केके सम्बन्धम् उसने कहा कि श्री नाथलिया द्वारा प्रस्तुत प्रमाण अपर्याप्त है, और यदि बादमे लड़केकी वल्दियतके वारेमे प्रमाणपत्र पेश किया गया तो उसे उतरनेकी इजाजत दे दी जायेगी। उसने यह भी कहा कि नायलियाके प्रति कानून थोड़ा कठोर जाता है और फिर जमानतकी रकम लौटा देनेकी सिफारिश की। दोनों लड़के पहले जहाजसे भारत चले गये। (इं० ओ०, ९-९-१९११)

१. इस पत्रके अन्तमें गांधीजीने अकालका जिक्र किया है। रायटरके संवाददाता द्वारा शिमलासे भेजे गये सितम्बर ५, १९११ के एक समाचार में पंजाब और राजस्थानमें अकालका उल्लेख मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि यह पत्र १९११ में लिखा गया था। उस वर्ष आश्विन सुदी २, सितम्बर २४ को पड़ी थी।