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पत्र : डो० प्राणजीवन मेहताको



भाई मणिलालको मैं अभी कुछ नहीं लिखता। उनका पिछला पत्र इसके साथ भेज रहा हूँ। मैंने उन्हें लिख दिया है कि वे जब आना चाहें आ जायें। फीनिक्सको भी उनके सम्बन्धमें लिख रखा है। मैं खुद फोनिक्स जा सकूँगा यह सम्भव नहीं लगता। अतः यहीं बुला लूंगा। मुझे यह भी लगता है कि यहाँ वे अनुभव हासिल कर सकेंगे। फिजी जानेके सम्बन्ध में तो मैंने साफ इनकार लिख भेजा है। वहाँ जायेंगे तो पछतायेंगे, मेरा ऐसा खयाल है। उनको एकदम रकम थमा देनेके लिए वहाँ कोई फालतू नहीं बैठा है।

अपने पत्रको दैनिक बनाकर तो उन्होंने बड़ी भूल की है। स्वयं पत्र खुदमें तो कुछ है ही नहीं। टाइप खराब, कागज रद्दी और सामग्री भी वैसी ही। मॉरिशसमें उसके अच्छे मददगार ही नहीं हैं तो पत्र कैसे ठीक प्रकाशित हो। और फिर पाठक भी इतने कहाँ हैं। इस सबके सम्बन्धमें उनके यहाँ आनेपर सलाह-मशविरा करूँगा।

आपने रिच आदिके सम्बन्धमें लिखा कि इस सम्बन्धमें आप जो-कुछ लिखें उसका मैं बुरा न मानूं। आपके मनमें ऐसी शंका उठनी भी नहीं चाहिए। जहाँ विशुद्ध भावसे विचार व्यक्त किये जाते हैं, वहाँ बुरा किसलिए माना जाये। अत: जिसके सम्बन्धमें आपको लिखना उचित जान पड़े और ठीक जंचे, आप अवश्य लिखते रहें।

गोरोंके प्रति हम जितना द्वेषभाव रखते है सम्भव है कि वे हमारे प्रति उससे भी अधिक रखते हों। किन्तु अगर वे थोड़ी भी प्रीति दिखाते हैं और हम बहुत तो इसका कारण ही जदा है। कारण यह है कि हम उनसे डरते हैं। बाकी मेरा अनभव तो यह है कि बहतेरे भारतीय भले-बरेका भेद करना नहीं जानते और गोरा-मात्र खराब होता है यह मान लेते हैं। सो एक ओर व्यर्थका भय दूर करना आवश्यक है और दूसरी ओर भले-बुरेकी पहचान जरूरी है। ये दोनों बाते समय आनेपर हो सकेंगी, ऐसा मेरा ख्याल है।

रिच या पोलक --किसीको भी मैं शिष्य नहीं मानता। उन्हें जबतक ठीक जान पड़ता है तबतक हमारे साथ काम कर रहे हैं। मेरी मृत्युके बाद वे जो-कुछ करें वह भी मेरी पसन्दका ही होगा, अगर लोग ऐसा मानें तो वह निराधार होगा। जो मेरे सम्पर्कमें आये हैं वे भलीभाँति जानते हैं कि उनके और मेरे बीच एक सत्याग्रहको छोड़, दूसरी बातोंमें मतभेद रहा करता है। तो भी जो सुझाव आपने दिये है उन्हें मैं नजर-अन्दाज तो नहीं करूंगा।

वहाँ आनेके सम्बन्धमें मैं काफी लिख चुका हूँ। अकालके दिनोंमें यदि मैं वहाँ रहूँ तो भरपूर चाकरी बजा सकूँ-- यह ख्याल तो मुझे भी बना रहता है। जब वक्त आएगा तब मैं वहाँ पहुँचे बिना नहीं रहूंगा। अधिक और क्या लिखू ? वहाँ कुशलताके साथ काम किया जा सके, मेरी सारी तैयारी इसीको सामने रखकर है।

मोहनदासका वन्देमातरम्

१. मणिलाल डॉक्टर, जिनकी सगाई डॉ० प्राणजीवन मेहताकी पुत्रीके साथ हुई थी। ये उस समय चॅल्स्टॉय फार्ममें रह रही थीं।

२. भारत ।