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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

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[पुनश्च]

टॉलस्टॉयका 'ईवान द फूल' यदि न पढ़ा हो, तो अवश्य पढ़ जाइए।

मेरे सम्बन्धमें लिखे आपके लेखको लेकर 'इंडियन ऊवलैंड' में लगभग तीन पृष्ठकी टीका है, उसे देखिएगा।

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू. ५६२९) से।

सौजन्य : सी० के० भट्ट

१३२. छगनलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश

[सितम्बर २८, १९११ से पूर्व]

...और जब संरक्षकने बातको सही नहीं बताया तब जो कुछ छापा गया है उसे छापना ठीक ही था। अय्यरने अब जो-कुछ लिखा है, उसके सम्बन्धमें वह निर्दोष है। उसके पीछे कुछ विघ्न-सन्तोषी लोग है। इसलिए हमें निर्भय रहना है। हम अपना कर्तव्य समझते है।

तुम दादा सेठ आदिसे कहना कि हम जिस बातको सिद्ध नहीं कर सकते उसे अखबारमें छापते हैं तो अपराध करते है। किन्तु यदि कांग्रेस उसके सम्बन्धमें कुछ छानबीन करके लिखे तो ठीक है। फिर भी अभी इस सम्बन्धमें छानबीन. . .

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस० एन०६०७८) से।

१. डर्जनसे प्रकाशित आफ्रिकन क्रॉनिकलमें, जिसके स्वामी और सम्पादक श्री अय्यर थे, सितम्बर, १९११ को जनुबिया नामक एक गिरमिटिया स्त्रीके मामलेको खबर छपी थी। इस सीके साथ, गर्भिणी होनेकी अवस्थामें, उसकी मालकिनने दो बार दुर्व्यवहार किया और उसे मारा-पीटा भी, जिसके फलस्वरूप पहली बार उसका गर्भपात हो गया और दूसरी बार बच्चा पैदा होनेसे कुछ ही देर बाद मर गया। खबरमें बताया गया था कि वह स्त्री अपने पतिके साथ दो बार प्रवासी संरक्षकके पास शिकायत करने गई, किन्तु दोनों बार उस अधिकारीने उन्हें वापस लौटा दिया। जब वह तीसरी बार गर्भवती हुई तो वह जंगलमें भाग गई । इंडियन ओपिनियन में यह खबर १६ सितम्बर, १९११ के अंकमें उद्धृत की गई थी; किन्तु दो सप्ताह बाद उसने छापा कि संरक्षकने वैसी किसी स्त्रीके आनेकी बातका खण्डन किया है। सितम्बर २८, १९११ को नेटाल इंडियन कांग्रेसने इस घटनाके सम्बन्धमें एक पत्र लिखकर संरक्षकसे पूछताछ की। खयाल है कि यह पूछताछ गांधीजी के सुझावपर ही की गई होगी, जिसका उल्लेख इस पत्र में है। इसलिए यह पत्र स्पष्टत: उस तारीखसे पहले ही लिखा गया होगा।

२. पी० एस० अभ्यर; डवनसे प्रकाशित होनेवाले पत्र आफ्रिकन क्रॉनिकलके स्वामी और सम्पादक । उन्होंने अपने पत्रमें गिरमिटियोंपर से ३ पौंडी कर हटवानेके लिए जोरदार आन्दोलन किया था और इसमें वे नेटाल मक्यूरी और प्रिटोरिया न्यूज आदि यूरोपीय पत्रोंका समर्थन प्राप्त करनेमें भी सफल हुए थे। उन्होंने सितम्बर १९११ में एक ३ पौडी कर-विरोधी लीग भी बनाई थी, जिसके वे स्वयं अवैतनिक मन्त्री थे। जब इस करको न देनेपर फिर गिरमिट में बंधनेवाले मजदूरोंपर मुकदमे चलाये जाने लगे तो उन्होंने नेटाल मक्युरीका ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचा कि, अप्रैल १९१० में जारी किये गये सरकारी गश्ती पत्रका, जो फिर गिरमिटमें बँधने और करके बारेमें था, अर्थ १९१० के अधिनियम १९ के अवसे भिन्न है।

३. दादा उस्मान।