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१३६. मूर्खराज और उसके भाई



भूमिका

हमने यह कहानी स्वर्गीय महापुरुष टॉल्स्टॉयकी लिखी हुई एक अत्यन्त भक्ति से ली है। हम उसका शाब्दिक अनवाद तो नहीं दे रहे हैं, फिर भी हमने उसे अपनी भाषामें इस प्रकार रखनेका प्रयत्न किया है जिससे उसका महत्व पूरी तौरपर समझा जा सके।

जो कहानी हम पहले प्रकाशित कर चुके हैं उससे यह कहीं बढ़कर है। यूरोपके अनेक लेखकोंने भी इसकी बहुत सराहना की है। उसमें जो कुछ लिखा है वह सब घटित हो सकता है। इतना ही नहीं बल्कि कोने-आंतरे ऐसी बातें आज भी हुआ करती है। यह नहीं मान लेना चाहिए कि चूंकि ऐसी घटनाओंको इतिहासमें स्थान नहीं मिला है, इसलिए उनके होनेकी संभावना नहीं है।

इस कहानी द्वारा टॉल्स्टॉय क्या सिखाना चाहते हैं, सो पाठक ज्यों-ज्यों इसके प्रकरणोंको क्रमश: पढ़ता जायेगा त्यों- त्यो सपष्ट होता जयेगा।

इस कहानीकी शैली इसकी उदात्त शिक्षाके अनुरूप रोचक है। अंग्रेजी अनुवादकी रोचकताको जिस हद तक हम उतार पाय है वह यदि पाठकोको पूरी तरह आकषित न कर पाये तो दोष हमारा होगा, न कि कहानीका।

इस खयालसे कि कहीं रूसी नामों और जगहोंके कारण पाठकका मन कहानीसे उचटने न लगे, हमने रूसी नामोंकी जगह अपनी पद्धतिके अनुसार भारतीय नाम रख दिये है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-१०-१९११

१. मूल कहानी यहाँ नहीं दी जा रही है।

२. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ १७५-७६ ।