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१३७. हरिलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश'



[अक्तूबर ७, १९११के आसपास ]

... मणिलाल अडालजा' गुजर गये। यह गजब ही हो गया। तुम्हें इससे सबक लेना है। मैं चाहता हूँ कि तुम आधुनिक पद्धतिकी शिक्षाके मोहमें अपना स्वास्थ्य न खो बैठो। इस सम्बन्धमें मैं अपने विचार तुमपर प्रकट कर चुका हूँ, अतः अधिक नहीं लिखता।

मुझे कांग्रेसके अध्यक्ष होनेका निमन्त्रण मिल चुका है, ऐसा कहा जा सकता है। अपने [विचार व्यक्त करने के लिए मुझे पूरी स्वतन्त्रता रहे इसी शर्तपर मैंने उसे स्वीकार किया है। मुझे इस पदकी ख्वाहिश नहीं है। पर यदि आना ही पड़ा तो हम उस वक्त मिलेंगे।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ६७५) से।

१३८. पत्र : डॉक्टर प्राणजीवन मेहताको

आश्विन बदी २ [अक्तूबर १०, १९११]

भाई श्री प्राणजीवन,

मैने आपके दो पत्रोंका जवाब नहीं दिया, कारण यह था कि यूरोपके पतेपर लिखनेकी तो बात ही नहीं थी।

हरिलालका इरादा मैटिककी परीक्षा देनेका है। मैंने उसे बहत समझाया कि उसमें कुछ नहीं है, किन्तु यह बात उसके गले ही नहीं उतरती। डिग्रियोंके लिए मुझे भी पहले मोह था; वह भी उसी दशामें पड़ा हुआ है। अतः उसे क्या दोष दिया जाये। मै तो यही मानता हूँ कि उसे एक दिन समझ आ जायेगी। जान पड़ता है कि उसका हेतु अच्छा है।

१. पत्रका पहला पृष्ठ उपलब्ध नहीं है; यह दूसरा पृष्ठ है।

२. सितम्बर ३०, १९११ तक यह बात सर्वविदित हो गई थी कि गांधीजीसे कांग्रेसका सभापति बननेके लिए उनकी मंजूरी मांगी गई है; देखिए "श्री गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस", पृष्ठ १५७। अक्तूबर ७, १९११ के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित एक समाचारसे पता चलता है कि गांधीजीने स्वयं तार द्वारा अपना उत्तर भेज दिया था। अत: यह पत्र लाभग उसी समय लिखा गया होगा।

३. हरिलालके साढ़, बली बहनके पति।

४. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसका अध्यक्ष-पद स्वीकार करनेके सम्बन्धमें गांधीजीसे सन् १९११ में पूछा गया था। उस वर्ष आश्विन बदी २, अक्तुबरकी १० तारीखको पड़ी थी।