पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/१९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६२
सम्पूर्ण गाँधी वाङमय


लगता हो, ऐसा भी नहीं है। उसकी भावनाका खयाल करते हुए उसके लेखादि एकदम बन्द कर देना उचित नहीं लगता।

कैलेनबैकसे आपकी भेंट होनेके बाद आपका कोई पत्र नहीं मिला। गत सप्ताह तो आपका पत्र मिला ही नहीं, आपकी ओरसे केवल एक पैम्फलेट आया था। जसमा सम्बन्धी गरबी आपने 'इं० ओ०' में देखी होगी ही। लोगोंको वह पसन्द आयी इसलिए उसे अलगसे भी छाप दिया है। मैंने उसकी एक प्रति आपको भेजनके लिए फोनिक्स लिखा है। यह गरबी अनायास ही छगनलालके हाथ लगी। मुझे तो लगा कि कविने इसमें अत्यन्त मीठी और सरल भाषामें प्रौढ़ ज्ञानका समावेश किया है। यह किसकी रचना है यह तो पता नहीं चल सका। इसे पढ़कर आपके मनपर कैसी छाप पड़ती है, सूचित कीजिएगा।

मोहनदासका वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६३०) से।

सौजन्य : सी०के० भद्र।

१३९. आवजनका मामला

केप टाउनमें सर जॉन बुकाननने श्री जर्बरके मामले में जो फैसला सुनाया है वह बहुत महत्वपूर्ण है। यद्यपि इसका सम्बन्ध एक रूस निवासी यहूदीसे है, तथापि यह ब्रिटिश भारतीय प्रवासियोंसे भी ताल्लुक रखता है। मुकदमेसे मालूम होता है कि इस प्रवासीके पास बीस पौंड थे, इसने अपना मार्ग-व्यय स्वयं चुकाया था, इसकी तन्दुरुस्ती अच्छी है, उसने किसी अपराधम सजा नहीं पाई और वह कुशल कारीगर है। यहदी पादरीने यह भी प्रमाणित किया कि वह प्राचीन यहदी भाषाका अच्छा विद्वान है। फिर भी प्रवासी अधिकारीने उसे निषिद्ध प्रवासी ठहराया; क्योंकि उसके हिसावसे उसमें आवश्यक शैक्षणिक योग्यता नहीं थी। हम जानते है कि दक्षिण आफ्रिकामें यहूदी किन्हीं खास निर्योग्यताओंके शिकार नहीं हैं। परन्तु उनके प्रति मन-ही-मन

१. गुजराती लोकगीतकी नायिका; एक झीलके निर्माणमें लगे मजदूरोंमें जसमा भी थी। यह झील गुजरातके राजा सिद्धराज बनवा रहे थे। राजाने जसमाकी ओर कुदृष्टि डाली किन्तु जसमाने उनका मनोरथ विफल करने में सफलता प्राप्त की।

२. गुजरातीका एक लोकगीत । इसे छगनलाल गांधीने इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशनके लिए चुना था और उसकी भूमिका भी लिखी थी। इस भूमिकाकी प्रशंसा गांधीजीने की थी; देखिए "पत्र: छानलाल गांधीको", पृष्ठ १५० ।

३. जैक जर्वर, रूस-निवासी यहूदी, अपने भाईके साथ रहनेके लिए दक्षिण आफ्रिका आया; किन्तु अनुमतिपत्र साथ नहीं लाया था। उसने प्रवेशके लिए आवश्यक शत पूरी करा ली थीं, किन्तु अपर्याप्त शिक्षाके आधारपर जहाजसे उसे उतरने नहीं दिया गया। केपकी प्रान्तीय अदालतने निर्णय दिया कि जबरको उतरनेका अधिकार है और प्रवासी अधिकारियोंका निर्णय ऐसा है जिसे विचारार्थ न्यायालयके सुपुर्द करनेकी जरूरत है । देखिए इंडियन ओपिनियन,१४-१०-१९११ ।।