पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६४
सम्पूर्ण गांधी वाङमय



मालूम होता है मेरे कांग्रेसमें जानेका प्रसंग नहीं आयेगा। लगता है, कलकत्तेसे जो तार आया था वह निमन्त्रण न होकर, केवल पूछताछ थी। गोखलेजीका तार है कि अध्यक्षका चुनाव तो २८ तारीखको होगा।

उसे पाकर मैंने तार कर दिया कि मेरे नामकी चर्चा न हो तो ठीक। मैंने यह भी सुझाया है कि मेरे विचार कुछ विचित्रसे लगेंगे और प्रतिकूल भी। अतः मैंने मान लिया है कि मेरा जाना नहीं होगा। और जाना न हो यह अनेक कारणोंसे वांछनीय प्रतीत होता है।

मैं भोजनमें अलोनी चीज़े और ज्यादातर फल लेता हूँ। इसमें दृष्टि तितिक्षाकी नहीं है, बल्कि इसका हेतु शरीर, मन और आत्माको अधिक स्वस्थ और स्वच्छ रखनेका है। लड़के बच्चोंको भी ऐसा ही करनेके लिए कहता रहता हूँ। मेरे मतमें नमक उत्तेजक (इरीटेन्ट) है और इसलिए हानिकारक है। इससे झूठी भूख लगती है और आदमी अधिक खा जाता है जिससे विषयेन्द्रियाँ व्यर्थ ही उद्दीप्त हो जाती हैं। ऐसा हो या न हो, अपने शास्त्रोंमें नमक न खानेकी महिमा बखानी गई है। अतः इससे लाभ होनेकी सम्भावना है। मैंने इससे कोई हानि होते नहीं देखी। जिन बीमारोंको मैंने नमक छोड़ देनेको कहा है उन्हें तो लाभ ही पहुँचते देखा है। आपके वैद्यकके ज्ञानके अनुसार इसमें कोई भूल नजर आती हो तो आप सुधार लीजिएगा।

भाई मणिलाल यहाँ है। उसे यहाँ आये अब एक सप्ताहसे अधिक हो चुका है। वे बड़े मीठे आदमी हैं और उनका स्वभाव सरल है। लगता है अक्षर-ज्ञानका मोह उन्हें अवतक बना है। मेरे विचारोंके अनुसार मुझे उनका शरीर स्वस्थ नहीं लगता। चरबी बहुत है; जिसका कारण उनका रहन-सहन है। बहुत-से लोगोंका कहना है कि मझसे मिलनेपर फार्मपर काम किये बिना कोई रह ही नहीं सकता। इस मान्यताको झूठा साबित करनेके लिए उन्होंने फोनिक्समें हँसी-हँसी में शपथ ली है, और उसे निबाहनके लिए फार्मपर किसी भी कामको छुआ तक नहीं है। फार्मके हितमें उन्हें काम करना बिलकुल जरूरी नहीं था, अलबत्ता उनके अपने शरीरकी दृष्टिसे बहुत जरूरी था; पर उन्होंने नहीं किया। यह एक दृष्टिसे ठीक ही हुआ, ऐसा मानता है। केवल मेरे कारण ही कोई काम करे यह तो गलत है। यह गलती हद तक मणिलालके व्यवहारसे दूर हो सकेगी। मैंने तो यह अनुभव किया कि जो लोग काम करते है, अच्छा समझ कर ही करते हैं। वैसे यह भी सच है कि कुछ लोग मेरे लिहाजमें आकर काम करते हैं। पर यह बात बिलकुल जदा है।

दूसरी ओर यह भी सोचता हूँ कि फार्म एक संस्था है; और उसकी अपनी एक कार्य-पद्धति है। उस प्रणालीको भाई मणिलाल जैसे सुशील लोग तोड़ तो उसका परिणाम नये लोगों और कच्ची उम्रके युवकोंपर अनपेक्षित रूपसे खराब पड़ेगा। ऐसी संस्थाओंमें विचारशील मनुष्य संस्थाकी प्रणालीका अनुसरण करें इसीमें उनकी शोभा

१.देखिए “पत्र: डॉ० प्राणजीवन मेहताको", पृष्ठ १६१

२. यह तार उपलब्ध नहीं है।

३. मणिलाल डॉक्टर; देखिए “ पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको", पृष्ठ १६१ ।