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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

मेरा तो विश्वास है कि मेरे रहन-सहनमें ऐसा कुछ नहीं है जो अपनाया न जा सके। यह हो सकता है कि जो विलायत हो आया है, अथवा जिसे विलायतकी हवा लग चुकी है उसे वह पसन्द न आये या वह उसे न अपना सके।

और आपपर तो मणिलालको जरा भी श्रद्धा नहीं है। उनका आरोप है कि आप बार-बार अपने विचार बदलते रहे हैं और एक छोरसे कूदकर दूसरे छोरपर आ गये हैं। यद्यपि उतने जोरका नहीं, फिर भी कुछ इसी प्रकारका आरोप वे मुझपर भी लगाते हैं। इसलिए उनका विचार है कि मध्यम मार्ग ग्रहण करके वे पश्चिम और पूर्व दोनोंसे लाभ उठायेंगे। मैंने तो उनसे कह दिया है कि यह केवल उनकी लाचारी, निर्बलता और काहिली है। परन्तु स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि यह बात उनकी समझमें आ जाये। हाँ, उनका दिल साफ है अत: आज नहीं तो कल, अनुभव पाकर वे ठीक मार्गपर आ जायेंगे यह विश्वास है।

उन्हें आवश्यक खर्च मैं यहाँसे देता रहता हूँ। इसे आपके नाम लिख दूंगा। इस सम्बन्धमें अब कूछ रह गया हो, ऐसा नहीं लगता। स्वयं मणिलाल और यह पत्र दोनों ही आपको साथ-साथ मिलेंगे। उनका इरादा कांग्रेसमें जानेका भी है। मैं प्रो० गोखले आदिके नाम पत्र देनेवाला हूं। जो यहीं कार्यमें लग जानेका निर्णय हो जाये तो समयपर वापस भेज दीजिए। यदि यहीं विवाह करना चाहेंगे तो भी कर दिया जायेगा। जब वह वापस आयें तब थोड़े समयके लिए ही सही मेरा दक्षिण आफ्रिकामें उपस्थित रहना ही ठीक होगा। उनके जम जानेपर ही मेरा निकलना उचित रहेगा। आगे-पीछे रिचके साथ शिरकतकी व्यवस्था कर दी जा सकती है। रिचकी वकालत अच्छी चल निकली है।

मोहनदासका वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६३१) से।

सौजन्य : सी० के० भट्ट

१४१, भाषण : नव-वर्ष समारोहमें

जोहानिसबर्ग
अक्टूबर २३, १९११

...रेवरेंड श्री फिलिपकी पाठशालामें हिन्दू मण्डलके कार्यकर्ताओंकी ओरसे दीवाली-महोत्सव [गुजराती नव-वर्ष] मनाया गया। इसकी अध्यक्षता श्री गांधीने की।.. श्री गांधी ठीक १० बजे अपनी धर्म-पत्नीके साथ वहां पहुंचे।. . .उन्होंने वीवालीके मंगल दिवसका महत्व समझाया और उस सम्बन्धमें कुछ सुझाव देते हुए कामना की कि नव-वर्ष सबके लिए सुखदायी हो।...

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,४-११-१९११