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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह मामला बहुत बड़ा नहीं है। जीत[१] भी बड़ी नहीं है, किन्तु उसका रहस्य बड़ा है। हमें जो करना उचित था उसको निर्भयतापूर्वक करने और उसमें जो मुसीबतें आयें उनको झेलनेके लिए हम तैयार हो गये, इस कारण हम संकटसे बचे और हमारी मान-रक्षा हुई। यह है सत्याग्रह।

इस मिसालमें एक और अधिक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि हिन्दुओंके निजी काममें मुसलमान और पारसी पूरे सद्भावसे दौड़े गये। उसका परिणाम अच्छा ही निकला। एक मामलेमें हम सत्य-पथका अनुसरण करें तो दूसरे मामलेमें भी अपनेआप वैसा ही होगा। जैसे उलझी हुई डोरकी एक गाँठ सुलझ जाये तो दूसरी गाँठे भी उसी तरह सुलझानेसे आसानीके साथ सुलझती जाती हैं; लौकिक व्यवहारमें भी ऐसा ही है।

हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई सब कैसे एक हों, इसका उत्तर श्री दाउद मुहम्मद और रुस्तमजीने दिया है।

यदि मुसलमान हिन्दुओंके कामोंमें आगे आकर सदभावना प्रकट करें, और वैसा ही मुसलमानोंके कामोंमें हिन्दू करें और ये दोनों पारसियोंके कामोंमें करें और फिर ये तीनों स्नेहके बन्धनमें बँध जायें तो ऐसा कौन मर्ख होगा कि उनके मार्गमें बाधक बने।

धर्म भले ही अलग-अलग हों, किन्तु एक ही परमपुरुषको-- एक ही वस्तुको-- आप अल्लाके नामसे, दूसरा खुदाके नामसे और मैं ईश्वरके नामसे पूजूं तो इसमें क्या बुराई हुई ? आप एक दिशामें मुंह करके पूजते हैं और मैं दूसरी दिशामें मुंह करके, तो इसके कारण मैं आपसे क्यों बैर बाँधूं? हम सब एक ही-- मनुष्य-जातिके हैं, हमारी चमड़ी एक ही है और हमारा देश भी एक ही है। ऐसी स्थितिमें यदि हम दुश्मनी करें तो यह हमारी नादानी और अदूरदर्शिता ही मानी जायेगी।

सुधारवादी लोग बहुत प्रकारके ताले खोलनके लिए एक ही कुंजी बना लेते हैं। उसे वे गुरु-किल्ली--‘मास्टर की' के नामसे पुकारते हैं। उसी प्रकार हमारे अगणित असुविधा-रूपी तालोंको खोलनेके लिए सत्याग्रह-रूपी एक ही मुख्य ताली है। इसको सब भारतीय ग्रहण कर लें तो क्या ही अच्छा हो। सत्याग्रह कोई बड़ा शब्द नहीं है। सत्यपर आरूढ़ रहना ही सत्याग्रह है। धर्ममें अन्य बहुत-सी बातें भले ही हों, किन्तु सत्यके बिना धर्म होता ही नहीं। यदि हम उस सत्यको समझ लें तो उसका पालन सुगमतासे किया जा सकता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९११

  1. मेयरने दीवालीके अवसरपर हिन्दुओंको पटाखे छोड़नेकी जो अनुमति दी उसकी सूचना छपी हुई पर्चियाँ बटवा कर दी गई थी । इंडियन ओपिनियन, २१-१०-१९११ ।