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१४६. पत्र: गो० कृ० गोखलेको

जोहानिसबर्ग
अक्तूबर ३०, १९११

प्रिय श्री गोखले,

कांग्रेसकी अध्यक्षतासे सम्बन्धित झमेलेके[१]बारेमें आपके लम्बे तारके लिए धन्यवाद । आपकी बीमारीका समाचार पाकर दुःख हुआ। क्या आप कभी भारत और इंग्लैंडके सिवा अन्य कहींकी यात्रापर नहीं जा सकेंगे? ब्रिटिश राजनीतिज्ञ तो [दूर-दूरकी यात्राएँ] करते हैं। फिर भारतीय राजनीतिज्ञ क्यों नहीं कर सकते? यदि आप कुछ समयके लिए दक्षिण आफ्रिका आ सकते! अब आपके जेल जानेका प्रश्न तो उठता, लेकिन फिर भी उससे दो काम बनेंगे। एक तो इससे यहाँकी जनता भारतके अधिक निकट आ जायगी और दूसरे मुझे आपके आरोग्यकी दृष्टिसे शुश्रूषा करनेका सौभाग्य प्राप्त हो जायेगा। आप जैसे बीमार है वैसे बीमारोंके लिए मेरा ख्याल है कि टॉल्स्टॉय फार्म और फीनिक्समें भी पर्याप्त सुविधाएँ मौजूद है। मैं इस बातका अनुमान भली-भाँति कर सकता हूँ कि श्री कैलेनबैक टॉल्स्टॉय फार्ममें आपका स्नेहपूर्ण स्वागत करेंगे और फीनिक्सको तो आप अपना घर ही समझिये।

इस बातकी सूचना कि भारतीय कांग्रेसकी अध्यक्षताके सिलसिले में मेरा नाम लिया गया है और गम्भीरतासे इसके बारेमें सोचा जा रहा है, मझे सबसे पहले नेटाल भारतीय कांग्रेसके एक तारसे मिली थी। तारका आशय यह था कि कांग्रेसके आगामी अधिवेशनकी अध्यक्षता ग्रहण करनेके बारेमें उसके पास मेरे नाम निमन्त्रण आया है और जिसमें उस पदको स्वीकार करनेका बड़ा आग्रह किया गया है। मेरा उत्तर[२] नकारात्मक था। साथ ही मैंने निमन्त्रण भेजनेवालेका नाम भी पूछा। निमन्त्रणकर्ताओंके जो नाम मेरे पास भज गयं उनमें आपका, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग, श्री पेटिट, श्री नटराजन्, श्री नटेसन, श्री एस० बोस और श्री मालवीयके नाम थे; तब मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। आपका और अखिल भारतीय मुस्लिम लीगका नाम सूचीमें था, इसके कारण उस तारका महत्व इतना बढ़ गया है कि मैं असमंजसमें पड़ गया हूँ। मैंने सोचा कि यदि आपकी भी, जो मेरे विचारोंसे भली-भांति परिचित हैं, यह इच्छा है कि मैं अध्यक्षता ग्रहण करूँ, तो निमन्त्रणका कोई विशेष कारण अवश्य रहा होगा। सूचना मुझे फार्मपर मिली थी। मैं जोहानिसबर्ग गया। वहाँ डर्बनके लोगोंसे उन तारोंकी पुष्टि टेलीफोन द्वारा प्राप्त हुई और उन्होंने बड़ा ही आग्रह किया कि मैं निमन्त्रण स्वीकार कर लूं। उनके हिसाबसे वह निमन्त्रण दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका अपूर्व सम्मान और साथ ही भारतकी जनताके सामने दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी समस्याको

  1. देखिए "पत्र: गो० कृ० गोखलेको", पृष्ठ १६७
  2. यह उपलब्ध नहीं है।