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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


और भी सुस्पष्ट रूपसे रखनेका अपूर्व अवसर था। यदि मेरे मनमें अत्यन्त मूर्खतापूर्ण आत्मश्लाघा काम न कर रही होती तो मैं डर्बनसे आए हुए समाचारकी सत्यतापर सन्देह किये बिना न रहता। जो भी हो, उस सूचनाके सही होनके बारेमें सन्देहके पक्षमें कोई तर्क देख सकनेके पहले ही मैंने डर्बन कांग्रेसको वह निमन्त्रण स्वीकार कर लेनेकी अपनी अनुमति भेज दी थी[१] लेकिन मुझे ऐसा लगा कि मुझे स्वयं, अलगसे, आपको एक तार भेजना[२] चाहिए; जो मैने भेजा भी था। उसके तीन-चार दिन बाद मेरे पास डर्बनसे एक पत्र आया जिसमें तार द्वारा मिली सूचनाओंकी पुष्टि की गई थी। लेकिन उसके साथ रायटरके एक पत्रकी प्रतिलिपि भी नत्थी थी। इस पत्रम उस तारका दूसरा ही अर्थ लगाया गया था। मुझे लगता है कि मैं जिन दिनों केपटाउनमें था, उन दिनों श्री पोलकने, जो डर्बनमें थे, वहाँसे उक्त नामोंका एक सांकेतिक पता डाकखानमें दर्ज करा लिया था। स्पष्ट ही उन सभीको सूचित कर दिया गया कि उस सांकेतिक पतेपर भेजे जानेवाले तार उन सभीके पास पहुँचा करेंगे। कलकत्तेके

बसू उस सांकेतिक पतेको काममें ले आये। इसीलिए यहाँ, डर्बनमें लोगोंने उस तारको बाँचनेपर यही अर्थ लगाया कि उसे छहों व्यक्तियोंने भेजा है। लेकिन रायटरके उस पत्रसे, जो सांकेतिक पता दर्ज करनेके अवसरपर उसने कांग्रेसको भेजा था, प्रकट होता है कि सांकेतिक शब्दका अर्थ, परिस्थितिके अनुसार वे छहों व्यक्ति या उनमें से कोई एक ही, हो सकता है। यदि मैंने ठीक अर्थ लगाया है तो इस मामलेमें सांकेतिक शब्दका अर्थ केवल 'श्री बसु' लगाया जाना चाहिए, क्योंकि तार कलकत्तासे भेजा गया था। इसीलिए मैंने उस तारको पढ़कर यही निष्कर्ष निकाला कि वह तथा-कथित निमन्त्रण, निमन्त्रण था ही नहीं, उसकी मन्शा नेटाल इंडियन कांग्रेससे फक्त यह मालूम करनेकी थी कि क्या वह मुझे अवकाश देगी। यदि श्री बसुको मेरा पता ठीक-ठीक मालूम होता और उनको यह भी ज्ञात होता कि सिर्फ 'गांधी' लिख देनसे भी तार मुझे मिल जाता है, तो शायद वह सीधे मुझको ही तार करते और तब, निःसन्देह इतना बखेड़ा पैदा न होता। मैं उत्तरमें केवल इतना ही लिख भेजता कि मैं यह सम्मान स्वीकार नहीं कर सकंगा। लेकिन गडबडी तो हो ही चकी थी और डर्बनके लोग, [कुछ] विशेष उत्साही व्यक्ति रायटरको समाचार प्रकाशित करनेकी अनुमति तक दे चुके थे। मेरे दूसरे तारके [३] उत्तरमें भेजे गये आपके तारने मुझे यह सूचित करके कि अभी निर्णय होना बाकी है मेरी अपनी व्याख्याकी ही पुष्टि की है। बादको सारी बातें तो आपपर विदित है ही। मैं तो यही आशा किये बैठा हूँ कि इलाहाबादमें मेरे नामांकनपत्र (नॉमिनेशन) के विरुद्ध ही निर्णय किया जायगा। [४] हो सकता है कि इसकी सूचना कल मिल जाय। यह पत्र में रविवार, २९ तारीखको बोलकर लिखा रहा हूँ। राष्ट्रीय परिषद्में प्रति वर्ष ऐसे अनेक प्रश्नों-

  1. देखिए “ श्री गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस", पृष्ठ १५७ ।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।
  3. यह उपलब्ध नहीं।
  4. इंडियन ओपिनियनमें ४-११-१९११को प्रकाशित रायटरके एक समाचारमें कहा गया था कि पण्डित विशन नारायण दर इंडियन नेशनल कांग्रेसके अध्यक्ष चुने जायेंगे।