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१४९. पत्र : डॉक्टर प्राणजीवन मेहताको

टॉल्स्टॉय फार्म
लॉली स्टेशन
ट्रान्सवाल
कार्तिक बदी ५, [नवम्बर ११, १९११][१]

पू० भाई प्राणजीवन,


आपके पत्र नहीं आये, इसलिए मैंने भी नियमपूर्वक नहीं लिखे। डाक आजकल अनियमित हो गई है, अत: जब और कुछ जरूरी लिखनेका कार्य होता है तब आपको पत्र लिखना स्थगित कर देता हूँ।

अपने कुछ पत्रोंके जवाबकी मैं प्रतीक्षा कर रहा है।

कांग्रेसकी अध्यक्षताकी बात समाप्त हो गई, यह अच्छा ही हुआ। शायद मैं आपको लिख ही चुका हूँ कि मैंने प्रो० गोखलेको एक लम्बा तार [२] भेजा था। यदि मझे इतना मालम हो जाता कि मात्र कलकत्तेकी समितिकी ओरसे पूछताछ-भर की जा रही है, तो चाहे कितना दबाव डाला जाता, मैं प्रारम्भमें ही साफ इनकार कर देता। जहाँ मैं अपनेको अपने विचार व्यक्त न कर सकने की स्थितिमें पाता हूँ, वहाँ मैं बिलकुल ही अनुपयोगी हो जाता हूँ।

काठियावाड़का अकाल भयंकर मालम होता है। आपने वहाँ जानेका विचार कायम रखा होगा। आप धनसे मदद तो करेंगे ही, साथ ही अविचारी राजाओंमें किसीसे यदि आपकी भेंट हो और उसे या दुसरे लोगोंको आप यह समझा सकें कि रेलवे आदिके उपद्रवसे गरीब जनताकी तो मौत ही है तो यह और अच्छा होगा। मुझे तो बराबर लगता ही रहता है कि ये चीजें आज अन्य देशों में भले ही पुसाती हों, भारतमें नहीं पुसातीं। जनताकी उन्नति न तो निर्यात करने में है और न आयात करने में। अपनी जरूरतकी चीजें हम [खुद] पैदा करें और उसी क्षेत्र में उनका उपयोग करें तो अकालसे हमें इतना अधिक कष्ट नहीं होगा।

मेरी छोटी-सी पाठशालामें धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। भोजनादिके नियम यदि सख्त न हों तो अधिक बालक आने लगें। लेकिन मुझे तो ऐसा ही लगता रहता है कि इन नियमोंको ढीला न किया जाय। और मैं यह चाहता भी नहीं कि बहुत

  1. १. इस पत्रमें भी कांग्रेसकी अध्यक्षताके झमेलेका उल्लेख है, अतः स्पष्ट है, यह भी १९११ में लिखा गया था।
  2. २. देखिए, “पत्र : डॉक्टर प्राणजीवन मेहताको", पृष्ठ १६४ ।