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१५१. पत्र : डॉक्टर प्राणजीवन मेहताको

टॉल्स्टॉय फार्म
लॉली स्टेशन, ट्रान्सवाल
ट्रान्सवाल
कार्तिक बदी १२ [नवम्बर १७, १९११][१]

भाई श्री प्राणजीवन,

आपका पत्र मिला। यह जानकर बहुत हर्ष हुआ कि आपने और छगनने स्टीमरपर मांसाहार नहीं किया। मुझे तो ऐसा लगता है कि आप छगनको इंग्लैंडसे ] देश वापस ले गये, इससे उसके जीवनकी रक्षा हो गई। ज्यादा समय बीतनेपर उससे उसकी विलायतकी आदतें छुड़ाना मुश्किल हो जाता।

मेरे भाषणके[२] विषय में आपने जो आशा व्यक्त की है, उस सम्बन्धमें अब कुछ कहने के लिए है नहीं। किन्तु आजकल मेरे मनकी दशा ऐसी तीव्र है कि इससे भिन्न कोई भाषण में दे ही नहीं सकता था। इसीलिए यदि वे मुझे [अध्यक्ष-पद ग्रहण करनेके लिए] बुलायें तो मैंने भाषणकी पूरी स्वतंत्रताकी मांग की थी। ऐसी स्वतंत्रता वे नहीं दे सकते, यह बात समझमें आती है। अध्यक्षके रूपमें मेरा वहाँ आना नहीं हो सका, यह ठीक ही हुआ।

“गुजराती" पत्रने अब उसे छापना स्वीकार किया है। किन्तु अब उसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। इस काममें किसी भी प्रकारका डर नहीं है, इस बातका पूरा निश्चय होनेके बाद ही [उसे प्रकाशित करनेका] यह काम हाथमें लिया गया म होता है। मणिलालके विषयमें मैं आपको सविस्तार लिख चुका हूँ।[३]

मिस स्मिथके विषयमें भी मैं अपनी बात समझा चुका हूँ।[४] यह स्त्री मलीन मनकी नहीं है, ऐसा मुझे लगा। वह किसी एक ही रास्ते चलनेवाली है। 'इंडियन ओपिनियन' के लिए वह जो-कुछ भी भेजती है, सो केवल प्रेम भावसे। उसे पैसेका लालच तो है ही नहीं।

  1. १. पत्रमें कांग्रेसकी अध्यक्षताकी बातके उल्लेखसे ज्ञात होता है कि अबतक गांधीजी इस सम्बन्धमें एक विशेष निष्कर्षपर पहुँच गये थे। इससे स्पष्ट है कि यह पत्र डॉ० मेहताके नाम (देखिए पृष्ठ १६०-६२, १६३-६६ और १७८-७९) लिखे पत्रोंक क्रममें है और १९११ में लिखा गया था । उस वर्ष कार्तिक बदी १२ को नवम्बरकी १७ तारीख पड़ी थी।
  2. २. गांधीजीने इसका उल्लेख डॉ० मेहताको लिखे पहलेके एक पत्र (देखिए पृष्ठ १६०-६२, १६३-६६ और १७८-७९) में भी किया है, किन्तु न यह स्पष्ट है कि यह कौन-सा भाषण है और न यही ज्ञात है कि यह उपलब्ध है या नहीं।
  3. ३. देखिए " पत्र : डॉक्टर प्राणजीवन मेहताको", पृष्ठ १६४-६६ ।
  4. ४. देखिए, “पत्र : डॉक्टर प्राणजीवन मेहताको", पृष्ठ १६१-६२ ।