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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


वर्तमान सदस्योंके प्रति हमारी यह अपील शायद विशेष रूपसे उपयुक्त है। कारण, ये वे ही लोग हैं जिन्होंने वेरीनिगिंग सन्धिकी अपनी व्याख्याके[१] स्वीकार किये जानेका आग्रह किया था और उसमें सफल भी हुए थे, यद्यपि वे निर्बल पक्षके थे। जनरल बोथाको हम सावधान करते हैं कि अपनी विजयकी[२] वेलामें कहीं वे भूतकालके सबकको न भूल जायें और गरीब तथा भोले-भाले लोगोंपर जुल्म ढाकर उन्हें अपनी मनमानी स्वीकार करनेके लिए मजबूर न करें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-११-१९११

१५३. पत्र: ए० एच० वेस्टको

शुक्रवारको रात्रि
[नवम्बर २४, १९११][३]

प्रिय वेस्ट,

मुझे तुम्हारी अपनी किसी बड़ी हानिका समाचार पाकर भी उतनी परेशानी न होती, जितनी तुम्हारे पत्रसे हुई है। मैं यही सोचकर धीरज बाँधे हूँ कि वह खबर बिलकुल निराधार निकलेगी। मैं उसे इतना नेक और रोजमर्राके मामलोंमें इतना पाक-साफ मानता हूं कि जबतक मैं तुम्हारे निश्चित निर्णयसे अवगत नहीं हो जाता तबतक मैं इन आरोपोंपर विश्वास नहीं करूंगा। पहले मैने सोचा कि उसे

  1. १. तात्पर्य युद्धके बाद बोअरोंके इस आग्रहसे है कि उन्हें वेरीनिगिंग संधिकी धारा ८ के “वतनी" शब्दकी व्याख्या अपने मनके मुताबिक करने दी जाये। असलमें वे इस प्रकार भारतीयोंको मताधिकारसे वंचित करना चाहते थे। उस समय लॉर्ड मिलनरने बोअरोंको ऐसा करनेकी छूट दे दी थी, किन्तु उसका परिणाम सिर्फ इतना ही हुआ कि “वतनियोंको मताधिकार देनेका सवाल...जबतक स्वशासन लागू न हो जाये तबतकके लिए" स्थगित कर दिया गया किन्तु, भारतीय गांधीजीके नेतृत्वमें राजनीतिक मताधिकारको छोड़नेको तैयार थे; देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३५६-५७, खण्ड ५, पृष्ठ ३४८, खण्ड ६, पृष्ठ २९३ और खण्ड ९, पृष्ठ ३७०-७१ ।
  2. २. तात्पर्य विजयकी उस घड़ीसे है जब बोअर युद्ध में पराजित होनेके पाँच सालके भीतर डच लोग हेटफोकके अधीन सम्मानपूर्ण संधि करनेमें सफल हुए। उस समय गांधीजीने लिखा था (देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ३६३ और पृष्ठ ३७५-३७६), "वह पराजय वस्तुत: डच लोगोंकी विजय थी"। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने अध्यवसाय और बलते १९०९ की संघ-व्यवस्थाको भी ऐसा रूप देनेमें सफलता प्राप्त की जो उनके हितोंके लिए बड़ा लाभदायक था।
  3. ३. यह पत्र लगभग उन्हीं दिनों लिखा गया होगा, जिस समय कि श्री वेस्टको लिखा गया तारीख २८-११-१९११ का पत्र (पृष्ठ १८६)। दोनों पत्रोंकी विषय-वस्तुसे लगता है कि यह पत्र पहले लिखा गया होगा।