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खेदजनक उत्तर


लिखू, लेकिन सोचता हूँ कि जबतक वह कोई जिक्र न करे तबतक मेरे उसे न लिखनेसे मामलेकी जाँच करने में तुम्हें मदद मिलेगी।

हृदयसे तुम्हारा
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ४४१४) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : ए० एच० वेस्ट

१५४. खेदजनक उत्तर[१]

तीन पौंडी करके प्रश्नके सम्बन्धमें श्री हरकोर्टका उत्तर अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि यह उत्तर संघ-सरकारको निश्चित नीतिका द्योतक है तो वह एक बड़े संघर्षको न्यौता दे रही है। यह संघर्ष शाब्दिक नहीं, क्रियात्मक होगा। स्वतन्त्र भारतीयोंका अपने और अपने गरीब भाइयोंके प्रति यह कर्त्तव्य है कि वे इस घणित करको रद करने के लिए कदम उठायें। भारतसे गिरमिटिया लोगोंका आना बन्द हो जानके साथ ही इस करका बचा-खुचा औचित्य भी समाप्त हो जाता है। साम्राज्य सरकारको अपने स्पष्ट कर्त्तव्यसे इतनी आसानीके साथ विमुख होने नहीं दिया जा सकता। यदि इस करका लगाया जाना अनुचित है तो फिर न शाही स्वीकृति और न संघ-सरकारका दृढ़ निश्चय ही उसे उचित बनाने में समर्थ है। भारतीय समाजको क्या-क्या कदम उठाने हैं, इसे नेटाल कांग्रेस जितनी जल्दी स्पष्ट कर दे, सभी सम्बन्धित पक्षोंके लिए उतना ही अच्छा होगा। यह अन्यायपूर्ण कर किसी भी कीमतपर समाप्त किया जाना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-११-१९११

  1. १. ब्रिटिश संसदमें सर डब्ल्यू० जे० वुलके प्रश्नके उत्तरमें श्री हरकोर्ट ने कहा था कि “उक्त कानून भारतीय और साम्राज्य, दोनों सरकारोंकी जानकारीमें बनाया गया था।" उन्होंने यह भी कहा कि यद्यपि गिरमिटिया भारतीयोंका नेटाल जाना रुक गया है, फिर भी दक्षिण आफ्रिकी सरकार ३ पौंडी परवाना कानून रद करनेको तैयार नह है देखिए इंडियन ओपिनियन, १८-११-१९११