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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


इस सिद्धान्तसे उनका कोई सरोकार नहीं। उन्हें “जियो और जीने दो"के सिद्धान्तपर चलना है। यदि उनपर आधुनिक प्रतिस्पर्धाका भूत सवार हुआ और वे उस लोभकी वृत्तिके रंगमें रंग गये, जो इस डींग हाँकनेवाली सभ्यताका प्रधान लक्षण है, तो उनका पतन अवश्यम्भावी है। [अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-१२-१९११

१६०. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको

दिसम्बर ७, १९११

प्रिय श्री लेन,

पिछली बार जब मैं जनरल स्मट्ससे मिला था तब मैंने वचन दिया था कि समझौतेकी शर्तोको किस प्रकार पूरा किया जा सकता है, इसपर मैं अपने विचार पेश करूँगा। जनरल स्मट्सको जब ऐसा जान पड़ा कि साम्राज्य-परिषद्[१] (इम्पीरियल कान्फ्रेन्स) के प्रस्तावके कारण दक्षिण आफ्रिकापर लागू होनेवाला कोई कानून पास करनेमें कठिनाई आ सकती है, तब उन्होंने मुझसे अपने विचार प्रस्तुत करनेको कहा था. . . । मैंने परिषद्को कार्यवाही पढ़ ली है और मेरी समझमें उक्त प्रस्ताव इस प्रश्नको प्रभावित नहीं करता। वह केवल विदेशी प्रवासियोंसे ही ताल्लुक रखता मालूम होता है।

कुछ भी हो, मैं सोचता हूँ कि यदि सर्वसामान्य कानून न बनाया जा सके तो मैने केपमें जो सुझाव दिये हैं उन्हींके मुताबिक ट्रान्सवाल प्रवासी अधिनियममें संशोधन कर लिया जाये। मेरे मसविदेका[२] पाठ आपके पास है। मेरे लिए उससे अच्छा मसविदा बनाना कठिन है और मैं कबूल करता हूँ, मुझे इस सुझावको कार्यान्वित करने में कोई वैधानिक कठिनाई नजर नहीं आती।

हृदयसे आपका

श्री ई० एफ० सी० लेन
प्रिटोरिया

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५५९५) की फोटो-नकलसे।

  1. साम्राज्य-परिषद्ने, जिसकी बैठक लन्दनमें १९ जूनको दोपहर बाद हुई थी, दो प्रस्ताव पास किये थे। प्रथम प्रस्तावमें “प्रवासियों और विदेशियोंको देशमें प्रवेश न करने देनेसे सम्बन्धित साम्राज्यीय अधिनियमों में और अधिक एकरूपता" बरतनेकी जरूरत बताई गई थी। इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९११ और देखिए परिशिष्ट ९ भी।
  2. देखिए “पत्र: ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ९-१०।