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१६१. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

टॉल्स्टॉय फार्म
लॉली स्टेशन
ट्रान्सवाल
दिसम्बर ८, १९११

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

आप अस्वस्थ थे फिर भी आपको गत ३ नवम्बरका वह लम्बा पत्र [बोलकर] लिखवानेका कष्ट करना पड़ा, यह सोचकर मुझे संताप हो रहा है। मैं भली-भांति समझ सकता हूँ कि रायटरके उस अभागे तारके कारण आपको कितनी व्यथा हुई होगी।[१] क्षमा-प्रार्थी हूँ। उस तारके छपनेके बाद यदि मेरे प्रति किसी मिथ्या स्नेहके कारण मुझे नामजद कर दिया गया होता तो बहुत ही दुःखपूर्ण बात होती। आपको इसके बारेमें आश्वस्त करनेकी आवश्यकता नहीं कि समाचारपत्रों में की गई चर्चासे मझे जरा भी परेशानी नहीं हुई और न उसका कोई असर ही मुझपर पड़ा है।

श्री रिचके नाम लिखे गये आपके पत्रसे आपकी पुत्रीकी अस्वस्थताके बारेमें मझे मालम हआ था। आशा है अब वह पूर्णत: स्वस्थ हो गई होगी।

श्री पोलक आपके पास हैं। इसलिए मुझे यहाँकी स्थितिके बारेमें कुछ भी लिखनेकी आवश्यकता नहीं। यही आशा लगाये बैठा हूँ[२] कि इस आशयका प्रस्ताव पास होकर ही रहेगा कि संसारके सभी भागोंमें गिरमिटिया मजदूरोंका भेजा जाना कतई बन्द कर दिया जाये।।

मैं आपको दक्षिण आफ्रिका आनके लिए आमंत्रित कर ही चुका है। वही प्रार्थना अब फिर कर रहा हूँ। यह प्रार्थना मैं आपके स्वास्थ्य और उन लोगोंके विचारसे कर रहा है जो आपके प्रति स्नेह रखते हैं और जो चाहते हैं कि आप वर्षों तक शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकारसे पूर्णतः स्वस्थ बने रहकर अभी वर्षों जियें। कितना अच्छा हो यदि आप पोलक दम्पतिके साथ ही यहाँ आ जायें; यदि उससे भी पहले हो सके, तो अवश्य ही। कृपया आना ही निश्चित कीजिए।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३८०५) की एक फोटो-नकलसे।

 
  1. देखिए पत्र : गो० कृ० गोखलेको", पृष्ठ १७२ ।।
  2. देखिए " पत्र: गो० कृ० गोखलेको", पृष्ठ १६७। यह प्रस्ताव इंडियन नेशनल कांग्रेसके उस अधिवेशनमें पास हुआ था, जो दिसम्बर २८,१९११ को समाप्त हुआ था। इंडियन ओपिनियन, ६-१-१९१२ ।